Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 67
________________ ५८ पदयात्रा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में व्यवस्था हो जायेगी । उस पन्द्रह को खर्च करने में उसे असुविधा नहीं होगी, लेकिन डेढ़ हजार खर्चा करने में उसे पचास तरह से विचार करना पड़ेगा। यही तो साधना है | साधना मार्ग अपनाने के बाद भी यदि यह सोचा जाय कि समय ज्यादा लग जायगा तो साधना कैसी । मैं आपको एक बात बताऊँ । जब मैंने खादी पहनना शुरू किया तो उस समय जब खादी खरीद की गयी लगा कि बाप रे बड़ी महंगी है खादी तो । यानी यह बीमारी तो औषधि से भी ज्यादा महंगी पड़ी। आखिर एक वरिष्ठ श्रावक हमारे पास आये और बड़े महाराज जी से बात बात में कह दिया कि भाई नाम तो खादी है लेकिन खर्चा इतना लग जाता है कि हमारे तीन के कपड़े बन जाये तो भी इनका एक का नहीं बनता । उन्होंने कहा कि आपके दस साधुओं के कपड़े का खर्चा यदि एक साधु पर लगता है तो हम खादी पहले बनवायेंगे मील के कपड़े को अपेक्षा । इसी को तो विवेक कहते हैं । तो मैंने यह अनुभव किया कि आज वाहन यात्री जितने भी हैं, देख लीजिए उसकी कितनी कदर है । और जो साधु वाहन यात्रा करते हैं उनमें भी जैन साधु । वह जैन संघ द्वारा ज्यादा श्रद्धा केन्द्र नहीं बन पाता । लोग उनकी तुलना चैत्यवासी या शिथिलाचारी साधुओं से करते हैं । जबकि बहुत जगह हमने देखा पदयात्री साधु भले ही कुछ पढ़ा लिखा हुआ न हो भले ही उसके पास कुछ न हो, लेकिन फिर भी उसको कुछ सूझ-बूझ है । वह पूज्य की दृष्टि से देखा जाता है । आज जब राजनेता चन्द्रशेखर ने अपनी पार्टी का प्रचार करने के लिए पद यात्रा का माध्यम लिया तो देश के सारे अखबार भर गये, केवल पदयात्रा के द्वारा पदयात्रा के कारण । सभी लोग पदयात्रा की महिमा गाने लगे क्योंकि उन्होंने पदयात्रा का अनुभव उसी समय किया जब स्वयं चले । सभी अखबारों में पदयात्रा ही पदयात्रा और यह निश्चित है कि वह व्यक्ति भले ही न जीता हो, लेकिन उसको बहुत बड़ी सफलता मिली पदयात्रा के द्वारा । हम तो आजकल यह भी सुनते हैं कि दूसरी पार्टी कांग्रेस आई वह भी अपनी पार्टी का प्रचार करने के लिए अपने नेताओं को प्रेरणा दे रही है कि पदयात्रा करो । अब उनको होश आया है कि हम पदयात्रा करें । वाहन यात्रा से तंग आ गये हैं लोग । वे चाहते हैं कि अब पदयात्रा करें। इसके द्वारा भी हम प्रचार करें प्रसार करें। हम जब इधर बंगाल में आये न । तो कहते हैं कि हम बनारस से आये हैं । आपनी बनारस थेके एसेछेन दादा ! बनारस थेके पाये पाये, हेटेहेटे । उनको बड़ा आश्चर्य होता । पदयात्रा इतनी लम्बी ! जबकि हम तो सारी जिन्दगी ही ऐसे चलते रहते हैं । उनके लिए बड़ा आश्चर्य और हमारे लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं । जैसे वाहन यात्रा एक साधन बन गई वैसे पदयात्रा एक साधन बन गया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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