Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 78
________________ आदर्शवाद-यथार्थवाद अचानक जमीन में से एक घड़ा निकला। वह घड़ा स्वर्ण मुद्राओं से भरा हुआ है। मैंने वह घड़ा ले जाकर इस आदमी को दिया जिससे कि मैंने जमीन खरीदी थी। क्योंकि मैंने तो केवल जमीन ही खरीदी थी न कि यह स्वर्ण-मुद्रा का घड़ा। इसलिए इस स्वर्ण मुहरों से भरे हुए घड़े पर मेरा कोई अधिकार नहीं है। लेकिन यह आदमी घड़ा लेता ही नहीं है और कहता है कि जब जमीन को मैंने बेच दिया है तो उस जमीन से यदि सोना भी निकलता है तो उस पर भी मेरा अधिकार नहीं और उसमें यदि खेत से कुछ उगता भी नहीं है तो उससे भी मेरा कोई सम्बन्ध नहीं। दूसरे आदमी को पोरस ने कहा कि भाई ! जब वह देने को तैयार है तब तुम इस स्वर्ण मुद्राओं को क्यों नहीं लेता तो उस आदमी ने कहा कि मेरा अधिकार ही नहीं है इस पर। जमीन मैंने बेच दी है अब उसमें जो भी निकलेगा सब पर उसका अधिकार है। मैं इसको नहीं लगा। बड़ी समस्या आ गयी। हम लोगों के तो स्वर्ण की मुहरें निकलती ही नहीं है और निकल जाये तो कोई किसी को खबर ही नहीं देता। जबकि पोरस के सामने दो व्यक्ति ऐसे खड़े हैं एक कहता है कि स्वर्ण मुहरों से भरा घड़ा मैं नहीं लूगा और दूसरे ने कहा कि मैं नहीं लगा। उसके सामने बड़ी विचित्र समस्या है। सिकन्दर ने सोचा पोरस इसका कैसा न्याय करता है । मैं भारत के आदर्शवाद के बारे में काफी सुन चुका हूं। आदर्श प्रजाजन में तो देख रहा हूं, राजा में कैसा आदर्शवाद है यह अब देखने जैसा है पोरस ने दोनों से पूछा कि क्या तुम्हारे कोई सन्तान है ! एक ने कहा हाँ, मेरे एक पुत्र है। दूसरे ने कहा कि मेरे एक पुत्री है। पोरस ने कहा कि तब एक काम करो और वह यह कि तुम दोनों अपनी सन्तानों का परस्पर विवाह करवा दो और दहेज के रूप में यह धन का घड़ा दे दो। सिकन्दर चकित था इसे कहते हैं यथार्थ आदर्शवाद ।। ___ यथार्थ का आदर्शात्मक और आदर्श का यथार्थात्मक प्रस्तुतिकरण कितने सुन्दर ढंग से हुआ है । आज भी ऐसा ही दृष्टिकोण जरूरी है। सत्य हालांकि यथार्थवाद में है किन्तु वह यथार्थवाद किस काम का, जो आदर्श पूर्ण न हो और वह आदर्श भी नकाम है जो यथार्थ की हिंसा कर दे। यथार्थ की आदर्शात्मक अभिव्यक्ति होनी चाहिये। इसी तरह आदर्श की भी यथार्थ तथा सत्य पूरित अभिव्यक्ति होनी चाहिए। सत्य तो है, यथार्थ और आदर्श के संगम में। ऐसा सत्य ही शिव और सुन्दर रूप है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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