Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 76
________________ आदर्शवाद-यथार्थवाद आज के जो यथार्थवादी हैं उनका दृष्टिकोण मुख्यतः उद्धार के हो लिए तो है फिर वह चाहे नारी हो चाहे शोषित मजदूर हो अथवा चाहे वृद्ध किसान हो लेकिन उनका उद्धार बड़ा विचित्र है। जहाँ पर आज का यथार्थवाद यह कहता है कि नारी को उसका अधिकार मिलना चाहिए। वहाँ तक तो ठीक है। लेकिन जहाँ पर यथार्थवाद यह कहता है कि नारी केवल एक मनुष्य के अधीन नहीं रह सकती वह स्वतंत्र है। जिस तरह से पुरुष स्वतन्त्र है एक से अधिक नारी रखने के लिए, वैसे ही नारी भी स्वतन्त्र है एक से ज्यादा पुरुष रखने के लिए। यहाँ पर भारतीय आदर्शवाद पाश्चात्य आदर्शवाद से बिलकुल अलग हो जायेगा । आज का यथार्थवादी दृष्टिकोण कहता है "मुक्त करो नारी को मानव ! चिरबंदिनी नारी को। युग-युग की बर्बर कारा से ! जननी सखी प्यारी को । मुक्त करने की बात तो ठीक है। जहाँ पर नारी के लिए यह कहाँ जाता है अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी। आंचल में है दूध और आंखों में पानो ॥ ये बात बिलकुल ठीक है । एक ओर तो आँखों से आँसू बहते हैं क्योंकि पुरुष केवल उसको अपनी जूती समझता है और नृशंष्यता व अत्याचार करता है। वहाँ पर तो यथार्थवाद की यह पुकार निश्चित रूप से नये आदर्शवाद को जन्म देगी। यथार्थवाद की जो यह पुकार है जैसे हम शोषित मजदूरों और शोषित किसानों के लिए भी लें तो यह कहना यथार्थवाद का सही है कि एक ओर तो गरीब आदमी को खाने के लिए रोटी नहीं मिलती, वहीं पर धनियों के कुत्ते महलों में रहते हैं और उनके खाने के लिये दूध-मलाई, और जलेबियाँ दी जाती हैं। गरीब को रहने के लिए झोंपड़ी नहीं है, वहीं पर अमीरों के कुत्तों के रहने के लिए अच्छे-अच्छे मकान होते हैं। गरीब को हवा खाने के लिए हाथ पंखी नहीं है वहीं पर अमीर के कुत्तों के लिए एयरकण्डिशन लगे हुए हैं। गरीब को स्नान करने के लिए एक बाल्टी पानी नहीं मिलता अमीर के कुत्ते शैम्पू और लक्स साबुन से नित्य स्नान करवाये जाते हैं। जहाँ पर गरीब जिन्दा है लेकिन जिन्दा होते हुए भी उसका पालन-पोषण नहीं होता वहीं पर अमोर आदमी मर जाता है तो मरने के बाद उसका शृंगार किया जाता है। उसको वह रूप दिया जाता है जो कि वह जिन्दों को नहीं देता। यदि आदमी जीवित आदमी पर इतना खर्चा कर दे तो शायद उसके मरने की नौबत नहीं आती लेकिन मरने के बाद हम सजाते हैं। उसका शृंगार करते हैं। शव को भी हम रूप और रंग देते हैं । कब्रों और स्मारकों के सम्मान जन-जीवन की उपेक्षा न तो आदर्शवाद है और न ही यथार्थवाद है। पन्त ने कहा है शव का दें हम रूप रङ्ग, आदर मानव का ? मानव को हम कुत्सित, चित्र बना दें शव का ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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