Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 72
________________ प्रश्न है : सत्य आदर्शवाद में है या यथार्थवाद में ? यदि यथार्थवाद में है तो आदर्शवाद की इतनी महिमा क्यों और यदि आदर्शवाद में सत्य है तो यथार्थवाद का क्या अर्थ ? __ मानव जीवन के दो पहलू हैं। एक तो वह जो हमें दिखाई देता है और दूसरा वह जिसे हम चाहते हैं। जो दिखाई देता है, वह यथार्थवाद है। जिसे हम चाहते हैं वह आदर्शवाद है। दिखाई तो हमें देता है जीवन दुखों से भरा हुआ, लेकिन चाहते हैं हम, जीवन को परम सुखी बनाना। चाहना अलग चीज है और जो सत्य दिखाई देता है, वह अलग चीज है। जो दिखाई देता है उसमें तो हम देखते हैं कि चारों तरफ अन्याय, अत्याचार, अराजकता और अनैतिकता है। लज्जा और मर्यादा के मकड़ीजाल के भीतर हमें व्यभिचार ही व्यभिचार दिखाई देता है। जो दिखाई देता है उसे देखकर आदमी दुःखी हो जाता है। जो दिखाई देता है वह हमेशा यथार्थवाद ही होता है। किन्तु जो हमें दिखाई देता है उसके परे भी कोई चीज है। जो जीवन में दृष्टिगोचर होता है उसके परे भी कोई स्वरूप है। इस जीवन से परे भी कोई जीवन है। इस संसार से परे भी कोई संसार है। इस पति से भी परे कोई पति है। इस सुख से परे भी कोई सुख है। यही तो है आदर्शवाद । ___ यथार्थवाद में तो जहाँ फूल हैं, वहाँ काँटें भी हैं। जबकि आदर्शवाद में केवल फूल ही फूल हैं, वहाँ काँटों का नामोनिशान भी नहीं है। इसलिए आदमी देखता तो है काँटों को और फूलों को-दोनों को ही, लेकिन जिसे चाहता है वह केवल फूल ही फूल हैं । आदमी काँटे को कभी नहीं चाहता है। बस, काँटे को न चाहना केवल फूल ही फूल को चाहना ही आदर्शवाद है। यही अन्तर है आदर्शवाद और यथार्थवाद में। वस्तुतः मनुष्य का जीवन कंटकाकीर्ण है। यह जीवन दुःखों और कष्टों से भरा हुआ है। जन्म और मरण मनुष्य-जीवन की सबसे बड़ी और सबसे चरम वेदना है। जन्म और मृत्यु से बढ़कर और कोई दूसरा कष्ट नहीं है हमारे जीवन में। हमारा जीवन तो प्रायश्चित है जन्म-मरण की वेदना के रूप में। जीवन, जन्म और मरण ये जो दो वेदनायें हम भोगते हैं, उसके बीच का एक पछतावा है। और यह पछतावा करते-करते आदमी अपनी सारी जिन्दगी में चैन की एक साँस भी नहीं ले पाता। जब भी देखें उसके जीवन में आकुलता है, व्याकुलता है, कष्ट आये हुए हैं, जीवन दुखों से भरा हुआ है। लेकिन इतना होते हुए भी मरना कोई नहीं चाहता। जन्म और मरण अपने आप में बहुत बड़ी वेदनायें हैं लेकिन आदमी यही कहता है कि जीवन तो वरदान है। वास्तव में जीवन मिला है पश्चाताप करने के लिए। लेकिन वह जीवन हमारे लिए वरदान सिद्ध हो जाता है और इसीलिए आदमी दीर्घायु होने की कामना करता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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