Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ पदयात्रा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पद-यात्रा यानी जीवन यात्रा । जैसे जीवन में एक-एक सांस ली जाती है, वैसे ही पद यात्रा में एक-एक कदम चला जाता है । पद-यात्रा दौड़ नहीं गंगा का शान्त प्रवाह है । उसमें ब्रह्मपुत्र नदी जैसी भयंकरता नहीं, प्रतिस्पर्धा नहीं । पदयात्रा यानी मन्द मुस्कान, खिलखिलाकर हँसना नहीं । पद-यात्रा यानी दीप का प्रकाश, सूर्य की चकाचौंध नहीं । पद-यात्रा सचमुच एक गतिमान जीवन हैजीवन मानो निर्मल गंगा मलयुक्त होगी हो अबरुद्ध, बहाव है जब तक गंगा में तभी तक है वह स्वच्छ शुद्ध । छल-छल-छल-छल कल-कल कल-कल कितनी मीठी यह अनुगूंज, बहते चल रे, चलते चल रे पूनम होगी यदि है दूज ॥ जैसे सुदि पक्ष का चन्द्र दूज के दिन बड़ा छोटा है लेकिन धीरे-धीरे एक-एक त कर वह वृद्धि को पाता है । और, अन्त में पूर्णिमा के दिन पूर्णता को उपलब्ध कर लेता है । पद-यात्रा बिल्कुल ऐसी ही है-चन्द्रयात्रा की तरह । ५३ किसी देश की मूल आत्मा को यदि पहचानना है तो पदयात्रा ही सबसे बढ़िया साधन है । ग्रामीण अंचलों की मूल आत्मा पदयात्रा के द्वारा ही पहचानी जा सकती हैं । देश की मौलिक संस्कृति, देश के मूल निवासियों की नागरिकता, भारतियों की भारतीयता यदि ये सब चीजें कहीं पहचानने के लिए हम जायें तो गाँव गाँव में जायें और उसके लिए सबसे बढ़िया और सबसे सस्ता साधन पदयात्रा है । देश-दर्शन, स्वाध्याय, सत्संग, ज्ञानार्जन ये सब पदयात्रा के माध्यम से स्वतः हो जाते हैं । गाँव-गाँव में जाते हैं और अनुभव संस्कृति है । पद-यात्री निकटता से हर चीज को देख सकता है । उसमें यांत्रिकता नहीं, हार्दिकता होती है । वह जितनी सहजता और समीपता से लोगों के जीवन, भावों तथा सांस्कृतिक मूल्यों का आकलन कर पाता है, वह द्रुतगामी वाहन- यात्रियों के लिए शक्य नहीं है । इसलिए वह प्रभावना कर बैठता है । करते हैं कि इस गांव की कैसी एक व्यक्ति जापान से भारत आता है दिल्ली पहुँच गया दिल्ली घूम लिया । वापस जापान चला गया कहेंगे भारत घूम आये । अरे भारत पोड़े घूमे हैं आप तो जापान में ही घूमे हैं । दिल्ली जापान ही तो है और क्या है ? गाँव-गाँव में जाते तो आपको असली भारत का पता लगता, नहीं तो आपको क्या पता लगेगा । जो दिल्ली में है वह टोकियो में भी मिल जायेगी । शहरों की सभ्यता तो जो जापान में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110