Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 60
________________ पदयात्रा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ५१ मन की गति से यात्रा करे । शब्द तो कब पहुँचेगा । लेकिन मनोगति उससे भी पहले पहुँच जायेगी । राकेट, अपोलो हवाई लूना इन सबसे पहले पहुँचेगा हमारा मन । मनुष्य तो चाहता है कि मैं मन की गति की तरह पहुँच जाऊँ किन्तु चाहने से ही तो कुछ नहीं हो सकता । चाहना और करना दोनों में बड़ा अन्तर हो जाता है । चाहता तो बहुत कुछ है । शब्द की गति से पहुँचना चाहता है । शब्द की गति यह बिल्कुल वैज्ञानिक परिभाषा आ गयी । शब्द में भी गति है । विज्ञान ने यह स्वीकार कर लिया शब्द जो हम यहाँ बोल रहे हैं वह केवल जैन भवन में ही नहीं है, वह निखिल ब्रह्मांड में शब्द पहुँच रहा है । सारे संसार में जहाँ तक संसार है वहाँ तक यह बोला जाने वाला शब्द पहुँच रहा है केवलज्ञानी - परम ज्ञानी कोई अपने ज्ञान के द्वारा उन शब्दों को पकड़ते थोड़े ही हैं । शब्द तो तरंगित होते हैं, ध्वनित होते हैं । । आप तालाब के पास जाइये एक छोटा सा कंकड़ लीजिये और तालाब में फेंक दीजिए । कंकड़ के द्वारा जो लहरें उठेंगी, वे लहरें उतनी दूर तक जायेंगी जहाँ तक तालाब है । तालाब का जहाँ तक पानी है वहाँ तक उसकी तरंगें पहुँचेगी । महावीर ही एक ऐसे हुए सबसे पहले जिन्होंने कहा कि शब्द में गति है । उनके पहले जितने भी दर्शन हुए, सब यही कहते थे कि जहाँ तक शब्द सुनाई पड़ता है वहीं तक शब्द पहुँचता है । लेकिन आज विज्ञान ने यह बात स्वीकार कर ली है, प्रमाणित की है कि बोला जाने वाला शब्द हवा की तरङ्गों के साथ सारे संसार में पहुँचता है | केवलज्ञानी - परमज्ञानी उन शब्दों को बीच में ही पकड़ लेते हैं । जो प्रश्न पूछा करना पड़ता वह स्वतः परम ज्ञानी कोई फालतू कहाँ हुआ था और फिर टेलीविजन है । यहाँ पर चित्र कोई नहीं है लेकिन टेलीविजन की मशीन चलाई जाए, चित्र सामने आ जाएगा इसी तरह से रेडियो को ले लें । वैसे ही जो परम ज्ञानी- केवलज्ञानी हैं, उनकी आत्मा में वे शब्द प्रतिध्वनित होंगे। जायेगा उसका उत्तर देने के लिए परम ज्ञानी को प्रयास नहीं अनायास ही निकलता है । परम ज्ञानी पूर्वभव बताते हैं । थोड़े ही है कि आप पहुंच जाइए और कहें कि मेरा पूर्व जन्म वे अपने ज्ञान बल के आधार पर आपके लिए भटकें और दस मिनट समय खराब करें | परम ज्ञानी व्यक्ति से तो आपने पूछा कि इस आत्म टेलीविजन में अपने आप सारे चित्र आ जाते हैं । आत्मा के दर्पण में अपने आप सब कुछ प्रतिबिम्बत होने लगता है । सारे चित्र इसलिए कह दिये जाते हैं बिना होता परम ज्ञानी में 1 यदि प्रयास रहा तो परम ज्ञानी निस्प्रयास होते हैं । दुनियाँ में जितने महापुरुष हुए, जिन्होंने शब्द की गति के विज्ञान को जाना, उन्होंने कभी कोई शास्त्र नहीं लिखा । कृष्ण, महावीर, बुद्ध किसी ने भी नहीं लिखा स्वयं | कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया, किन्तु उसे लिखा नहीं । महावीर ने Jain Education International For Personal & Private Use Only प्रयास के । प्रयास नहीं कभी नहीं हुआ । वे तो www.jainelibrary.org

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