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महावीर समाधान के वातायन में
ही क्रियान्वित किया। इसलिए गांधी वस्तुतः महावीर के दूत हैं, सन्देशवाहक हैं । ठीक वैसे ही जैसे अल्ला के पैगम्बर मुहम्मद हुए।
महावीर मानव - मुकुट हुए। खरेखर, वे वीर थे, महावीर थे, भला, जिस युग में मानव मानव से घृणा करता हो, उस समय हर मानव के प्रति समानता, मैत्री और करुणा-दया रखने की प्रेरणा देना कितनी अनूठी बात है। यह महावीरों के ही हाथ की बात है। इसलिए महावीर भगवान् की सभा में जहाँ एक ओर गौतम, अग्निभूति जैसे उत्तम ब्राह्मणकुल में उत्पन्न व्यक्ति को साधना-मार्ग में दीक्षित किया गया, वहीं पर हरिकेशबल जैसे शूद्र और आर्द्र कुमार जैसे अनार्यकुल में उत्पन्न व्यक्ति को भी दीक्षित किया गया था। हत्यारे अर्जुन और चोर रोहणिये को भी महावीर स्वामी ने साधना-मार्ग पर ठीक वैसे ही आरूढ़ किया था, जैसे राजकुमार मेघकुमार और अतिमुक्तक आदि को। सचमुच,
हर आत्मा में परमात्मा है,
क्षुद्रों में भी ज्योति महान । सारी मानव-जाति एक है,
उसमें कैसा भेद-वितान ? ज्योति सबकी एक है, फिर चाहे वह मिट्टी के दिये से प्रगट हुई हो, चाहे सोने के दिये से । भीतर से सब नग्न हैं, और एक जैसे, वस्त्र तो आवरण हैं, बाहरी आरोपण हैं। इसलिए महावीर स्वामी ने जातिगत भेदभाव का पूरा निषेध किया।
न केवल जातिगत भेदभाव, अपितु आर्थिक दृष्टि से भी महावीर ने मानव मात्र को एक समान बताया। उनकी सभा में जितना महत्त्व मगध नरेश श्रेणिक और राजा कोणिक को मिलता था, उतना ही महत्त्व पूणिया जैसे निर्धन वैश्य श्रावक को मिलता था। वहाँ पर गुणों की पूजा है पंसे की नहीं है। मगध-नरेश के आने पर यह नहीं कहा जाता था कि आइये ! आइये !! पधारिये !!! आगे बैठिये। और पूणिये जैसे गरीबों को यह नहीं कहा जाता था कि पीछे जाकर बैठो। मनुष्यमात्र एक समान है। पैसे के द्वारा, जन्मना जाति के द्वारा मानव का विभाजन नहीं किया जा सकता महावीर दुनियां के सबसे पहले साम्यवादी हुए। उन्होंने ही साम्यवाद की सर्वप्रथम स्थापना की। साम्यवाद के प्रथम आचार्य और प्रवर्तक महावीर स्वामी हुए ।
चाहे जातिगत दृष्टि से, चाहे सामाजिक दृष्टि से और चाहे आर्थिक दृष्टि से सभी दृष्टियों से महावीर ने सबको एक समान समझा। जाति तो बपौती तथा पैतृक देन है और धन चंचल है। जो अमीर कल धंन का गर्व कर रहा था, वही आज भीख मांगता नजर आता है। और जो कल भीख मांग रहा था, वह आज वैभवसम्पन्न दिखाई देता है। ऐसे उदाहरण हम अपनी आँखों के सामने रोजाना देखते हैं। किसी का जहाज डूबता है तो किसी की लॉटरी खुलती है। सुख और दुःख के व्यूह-चक्र में
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