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चमत्कार : एक भ्रमजाल
जिनदत्तसूरि का प्रभाव नहीं, यह युगप्रधानता का प्रभाव है। यह किसी आचार्य की शक्ति नहीं है, यह तो आचार्यत्व की शक्ति है अतिशय महावीर स्वामी की शक्ति नहीं है, यह तो तीर्थ करत्व की शक्ति है तीर्थ कर की महिमा है।
. हम लोग चमत्कार के पीछे पड़े हैं। हम पूजा करते हैं चमत्कार के लिए। प्रार्थना करते हैं चमत्कार के लिए। दादा-बाड़ी जाते हैं चमत्कार के लिए। प्रार्थना करते हैं चमत्कार के लिए। हमारा मन ही कुछ ऐसा है कि हम चमत्कार को ही स्वीकार करते हैं। क्या यह कम चमत्कार है, कि जिस धर्म के प्रवर्तक चमत्कार को नहीं मानते थे, उस धर्म के अनुयायी केवल चमत्कार ही चमत्कार चिल्लाते हैं. वे केवल चमत्कार को ही मानते हैं। उसी के आगे सिर नमाते हैं। इसीलिए तो चमत्कार को लोगों ने पूजा-प्रार्थना की अटूट कड़ी माना है । आप लोग पूजा में बोलते हैं 'नमस्कार है चमत्कार को।'
___ आप मन्दिर गए, भोमियाजी को कहा अथवा भगवान् पार्श्वनाथ के गए अथवा और किसी के, और कहेंगे
हे भगवान ! मेरी घड़ी गुम हो गई है। दो हजार रुपये की घड़ी थी। यदि घड़ी मिल जायेगी तो दो रुपये का प्रसाद चढ़ाऊँगा। महावीर स्वामी ऐसा नहीं कहेंगे कि मेरा देवदुष्य खो गया है उसको वापस पाने के लिए मैं इन्द्र को पूजू, प्रसाद चढ़ाऊँ। महावीर तो ऐसे वीर थे कि उन्होंने प्रसाद शब्द का कभी उल्लेख भी नहीं किया। यदि प्रसाद होता और प्रसाद से चमत्कार घटता तो इसका उल्लेख कहीं न कहीं जरूर ही आगम ग्रन्थों में होता। हम दो रुपये का प्रसाद चढ़ाकर दो हजार रुपये का चमत्कार चाहते हैं। यह घूसखोरी भगवान के दरबार में प्रविष्ट भी नहीं होनी चाहिये ।
___ मैं जब 'वाराणसी'-काशी में था तो वहाँ मैं विश्वनाथ मन्दिर गया। भक्तों की भारी भीड़। पुजारी पण्डे कह रहे थे कि यहाँ बाबा पर जो एक रुपया चढ़ायेगा उसे विश्वनाथ बाबा लाख देंगे।
एक ग्रामीण आदमी आया। उसने जब यह सुना तो एक रुपया चढ़ा दिया । पुजारी ने फिर वही अपना रटा-रटाया फार्मूला दोहराया। उस आदमी ने एक रुपया और चढ़ा दिया। मैंने सोचा कि यह कौन-सा गणित है कि एक का सीधा लाख । पुजारी भी लोभ देता है । भला भगवान के यहाँ कोई टकसाल थोड़ी है। रुपया चढ़ाने वाले लाखों हैं। भगवान से दरबार में धन नहीं है, मन की शान्ति मिलती है। वह भी लाख बार प्रयास करो तब कहीं जाकर एक बार सफलता मिलती है। तो हम लोग चमत्कार को ही मानते हैं चमत्कार के ही वशीभूत हैं। महावीर स्वामी चमत्कार को नहीं मानते। वे चमत्कार में विश्वास भी नहीं रखते।
हम महावीर स्वामी को भूल गये बाद में कई आई हुई परम्पराओं को ले बैठे हैं। मैं चाहता हूं कि हम महावीर के शुद्ध मार्ग को जानें। जैसे गणित में है कि
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