Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 48
________________ आचार-व्यवहार हो देशकालानुरूप करें तो यह बात उन्हें अच्छी नहीं लगी और उन्होंने दो पात्र रखने का निर्देश दिया। इस पर समाज में काफी हो-हंगामा हुआ होगा। लेकिन देश और परिस्थिति को देखते हुए आचार और व्यवहार में परिवर्तन लाना ही पड़ता है। श्रमण-वर्ग को तो हम एक किनारे रखें, समाज पर हम आयें। एक जमाना था जब पर्दा प्रथा नहीं थी। महावीर के समय में पर्दा-प्रथा नहीं थी, उससे पहले तो थी ही नहीं। लेकिन महावीर स्वामी के बाद पर्दा-प्रथा आनी शुरू हो गयी और मध्यकाल में तो पर्दा-प्रथा इतनी भयंकर हो गयो कि स्त्री असूर्यम्पश्या हो गयी उसको स्वतन्त्रता परतंत्रता में बदल गयी थी। एक जमाना था जबकि पर्दा नहीं था। एक जमाना आया जब पर्दा आया और आज वह जमाना आ गया है कि पर्दा-प्रथा वापस उठने लग गयी है। अब तो क्लब्स में वस्त्रप्रथा ही हटने लग गयी है। इसी तरह से मृत भोज हुआ करता है। इसी तरह से हम दहेज प्रथा को ले सकते हैं, इसी तरह से हम विधवा-विवाह को ले सकते हैं, इसी तरह से हम ले सकते हैं सती होना यानी चिता में जलकर मर जाना, इन सारी की सारी प्रथाओं में समय समय पर परिवर्तन आया ही है। देश क्षेत्र और समय के अनुसार परिवर्तन होता ही गया। आज भी कितने-कितने प्रकार के परिवर्तन हुए हैं हमारे आचार और व्यवहार में। न केवल श्रावक वर्ग में अपितु श्रमण वर्ग में भी बहुत प्रकार के आचार और व्यवहार में परिवर्तन आये हैं। सौ वर्ष पूर्व कोई जैन साधु बम्बई नहीं जाता था। जब मोहनलाल जी महाराज बम्बई चले गये थे तो लोगों में काफी हुड़दंग मची थी। बहुत से बड़े-बड़े आचार्य इसका विरोध करते थे कि कोई भी साधु बम्बई में न जाये। लेकिन आज अनेक आचार्य लोग तरसते हैं बम्बई जाने के लिए कि एक चार्तुमास तो कम से कम बम्बई हो ही। आज समय की माँग है, उस क्षेत्र में श्रमण वर्ग की आवश्यकता है। अतः जाना जरूरी हो गया है । तो ये कोई गलत काम थोड़ी ही है कि श्रमण-वर्ग वहाँ जाता है। इसी प्रकार मूर्तिपूजा को लिया जा सकता है। आज से लगभग पाँच सौसात सौ वर्ष पहले मूर्तिपूजा के साथ आडम्बर बहुत अधिक जुड़ गया था भक्तिवशात भावपूजा गौण और द्रव्य-पूजा मुख्य हो गई। स्थानकवासी और तेरहपन्थी सम्प्रदाय के धर्मप्रवर्तकों ने क्रांति मचाई, जो कि जरूरी भी हो गई। यदि वे ऐसा न करते तो जैनत्व को बड़ा आघात लगता है। लेकिन वे अतिवादिता को छू बैठे, सीमा का उल्लंघन कर दिया उन्होंने । लक्ष्मण-रेखा खींची तो थी रक्षा के लिए मगर जब उसका उल्लंघन करेंगे तो सिर पर खतरा आयेगा ही सीता की तरह। वस्तुतः भिक्खुगणि आदि को विरोध तो करना था द्रव्य-पूजा में समागत आडम्बर का, किन्तु वे मूर्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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