Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 39
________________ चमत्कार : एक भ्रमजाल कहा कि ये मैंने कहा कि आपकी बात बिल्कुल ठीक है । लेकिन एक प्रश्न पूछता हूं कि स्त्रियों के स्तन से दूध कैसे बाहर निकलता है ? जब बच्चा पैदा होता है तभी निकलता है उससे पहले नहीं निकलता । वंध्यास्त्री के स्तनों में दूध कभी नहीं आता मातृत्व के उमड़ते ही स्तनों से दूध बह पड़ता है | बच्चे को दूर से देखकर भी कभी-कभी माँ के स्तनों से दूध निकल पड़ता है, क्या आप इस बात को मानते हैं ? उन्होंने तो हारमोन के परिवर्तन से ऐसा हो जाता है और माँ का वात्सल्य बच्चे के प्रति होता है, इसलिये माँ के स्तनों से दूध बहा करता है । मैंने कहा कि माँ का एक बच्चे के प्रति ही केवल वात्सल्य होता है । एक बच्चे के प्रति होने वाले वात्सल्य से यदि स्तन से दूध निकल आता है तो जिस व्यक्ति के हृदय में सारे संसार के प्रति वात्सल्य उमड़ता है, जिसके दिल में अगाध करुणा है, दया है, उसके अँगूठे से यदि दूध निकल पड़ता है तो कौन से आश्चर्य की बात है । यह तो बिल्कुल सामान्य बात है अगर वैसी साधना हो तो । ३० महावीर ने बाद में कैवल्य पाया । बहुत कुछ उपदेश दिये, उनके पास सब कुछ था । लेकिन फिर भी चमत्कार न दिखा पाये । गौतम उनके पास आया । उसने देवी-देवताओं को, समवसरणं को देखा, लेकिन वह उससे प्रभावित नहीं हुआ । लेकिन जब महावीर ने सत्य को प्रकट किया तो गौतम तो क्या उसके सारे शिष्य और दूसरे आचार्य भी प्रभावित हो गये । गौतम चमत्कार से प्रभावित नहीं हुआ सत्य से प्रभावित हुआ । प्रभावना सत्य से होती है चमत्कार से नहीं । पैतीस अतिशय और चौतीस वाणी इसको लोग कहते हैं चमत्कार नहीं है । यह तो तीर्थ कर की महिमा है । तीर्थकर होने के कारण ये सब अतिशय घटित होते हैं । महावीर स्वामी स्वयं ये अतिशय नहीं दिखाते, स्वयं कोई चमत्कार नहीं दिखाते ये तो तीर्थंकर का स्वभाव है । यह तो तीर्थ कर पद की महिमा है । कभी-कभी ऐसा भी होता है कि श्रद्धा और आस्था में अतिशयोक्ति की भावना आ जाती है । आचारांग सूत्र जैनों का सबसे पुराना लिपिबद्ध ग्रन्थ है । उसमें महावीर का जीवन दर्शन पढ़िये सच्चे महावीर का सच्चा जीवन-दर्शन वर्णित है । सच्चाई का वर्णन है, अतिशयता का वर्णन नहीं है । हम आजकल कुछेक आचार्यों को युगप्रधान कहते हैं । लेकिन आज के युगप्रधान पुरुष में कोई भी अतिशय देखने को नहीं मिलता। यदि हम जिनदत्तसूरि अथवा अन्य आचार्य को जिनको हम कहते हैं कि ये चमत्कारी थे । तो आज के युग - प्रधानों में भी चमत्कार होने चाहिए । लेकिन वे चमत्कार नहीं है । उपाध्याय देवचन्द्र ने तो युगप्रधान पद की महिमा बताते हुए कहा कि जो आचार्य युग-प्रधान है, वह यदि घर में आ जाये तो सारा घर ही पवित्र हो जाता है । उनका यदि हम पैर धोलें, चरण पक्षालन करें और उस पानी को घर में छिड़के तो शान्ति हो जाती है । यह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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