Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ चमत्कार : एक भ्रमजाल एक और एक दो होते हैं, ऐसा ही महावीर का मार्ग है, उसमें कल्पना की उड़ानें नहीं; गणित और विज्ञान का दर्शन होता है । अत: जब तक महावीर स्वामी के शुद्ध मार्ग को नहीं बताया जायेगा तब तक जैन धर्म का मार्ग अशुद्ध रहेगा हमारी शुद्धता के लिए शुद्ध मार्ग का दर्शन एवं ज्ञान जरुरी है । आज जैनधर्म में जो परम्परायें फैली हुई है, वे परम्परायें वास्तव में जैन धर्म की नहीं है भगवान् महावीर द्वारा निर्दिष्ट नहीं हैं, ये हमारी अपनी बनाई परम्परायें हैं । हमने ही बनाई है। सारे च मत्कार हमारे ही द्वारा बने बनाये हुए हैं । ये तीर्थं कर के बनाए हुए नहीं है । 1 तो इसलिए महावीर के जीवन में ऐसा कोई भी प्रसंग नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि भगवान महावीर ने चमत्कार दिखाया था या उनका चमत्कार में विश्वास था । कोई भी महापुरुष, कोई भी आत्म गवेषक निर्वाणाभिमुख व्यक्ति चमत्कार के फन्दे में नहीं फँसा । उन्होंने कभी चमत्कार दिखाया ही नहीं । महावीर के सारे उपदेश चमत्कार के विरोधी हैं । महावीर स्वामी के सारे उपदेश, सारे वक्तव्य ऐसे हैं जैसे स्वयं महावीर थे । उन्होंने तो जैसा सत्य था, वैसा कहा। महावीर नग्न रहे | जैसा अस्तित्व था वैसा व्यक्त किया । कोई वस्त्रावरण नहीं, कोई साज नहीं, कोई शृंगार नहीं, कोई सजावट नहीं, कोई काव्यता नहीं, बिल्कुल गणितीय हिसाब है वैज्ञानिक हिसाब है | काव्य में शृंगार का आकर्षण है, नवजात उड़ती कल्पनाएँ और गणित और विज्ञान में जैसा होता है, वैसा प्रदर्शित किया जाता है। महावीर गणितज्ञ और वैज्ञानिक भी थे, अध्यात्म जगत के । प्रामाणिकता ही उनके वक्तव्यों की विशेषताएँ हैं । 1 स्पष्टता, वैज्ञानिकता और ३२ हम चमत्कार को उनसे जोड़कर बड़ी भूल करते हैं । चमत्कार को हटा दिया जाय, तभी महावीर स्वामी का विशुद्ध मार्ग बचेगा । मैं आपको जैन- परम्परा को उतना ही नहीं बताना चाहता, जितना मैं चाहता हूं कि आप सब महावीर स्वामी के विशुद्ध मार्ग को समझें एक सद्गुरु और अर्हत् तीर्थ कर की मूल बातों को समझें जो आदमी महावीर के विशुद्ध मार्ग को समझ लेगा वह सचमुच महावीर बन जायेगा, निजमें छिपे जिनत्व को प्राप्त कर लेगा । सच्चे अर्थों में वह तभी सच्चा जैन हो पायेगा । उसके बाद में चली आई हुई परम्पराओं में जिनमें अनेक प्रकार के परिवर्तन हुए, उनको यदि हम लिए बैठे रहेंगे तो महावीर नहीं होंगे । हम तो अपनी कायरता और प्रमत्तता के कोढ़-रोग को महावीर के रत्नकम्बल के द्वारा ढँकते हैं, ओट लेते हैं, छिपा लेते हैं | चमत्कार को बिल्कुल हटा देना चाहिए। जिस दिन हम चमत्कार के पीछे पड़मा छोड़ देंगे, उस दिन से हम पायेंगे कि हमारी अन्तर्यात्रा शुरू हो गयी । हम अन्धनिष्ठा से मुक्त और आत्मनिष्ठा से युक्त हो गये । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110