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चमत्कार : एक भ्रमजाल
मनुष्य की कायरता और कमजोरी को प्रगट करना है। समय आने पर सब कुछ सम्भव है और जहाँ सब कुछ सम्भव है, वहाँ चमत्कार नहीं है।
आज विज्ञान का युग है। यहाँ अब बहरे भी सुनने लगते हैं, गूगा भी बोलने लगता है और पंगु चलने लगता है। विज्ञान का प्रत्येक आविष्कार नया आश्चर्य है। आप लोग तो उसे भी नया चमत्कार मानेंगे। ये वायुयान, बिजली वायरलेस, टेलीविजन, टेलीस्कोप, मशीन्स, हाइड्रोजन बम, टैंक, टारपीडो-इनकी तो शायद हमारे पूर्वजों को कल्पना भी नहीं होगी। उनके लिए तो ये सब महाअसम्भव थी। मगर आज कोई कह सकता है कि ये सब सम्भव नहीं है ? आँखों से देखे हुए को भला कौन अस्वीकार कर सकता है.? उचित समय और उचित श्रम ही नया आविष्कार करता है । इस विज्ञान के सामने चमत्कार की बातें अमान्य हैं ।
महाभारत में महायुद्ध हुआ। कृष्ण को भगवान् का अवतार माना जाता है। कृष्ण जब ईश्वर के अवतार थे, वे चाहते तो अकेले ही सारे कौरवों को नष्ट कर सकते थे। उनके पास सघन शक्ति और ताकत थी, लेकिन उन्होंने यह चमत्कार नहीं किया। यदि वे ऐसा कर देते तो धर्मनीति और धर्मयुद्ध कोड़ी की कीमत के भी नहीं रहते। अर्जुन युद्ध के मैदान से खिसकने लग गया, किन्तु चमत्कार न दिखा सके कृष्ण । यदि कृष्ण चमत्कार दिखा देते तो गीता का एक श्लोक भी नहीं रच पाता। गीता जैसे अमूल्य ग्रन्थ के जन्म के लिए यह जरूरी था कि कृष्ण कोई चमत्कार न दिखाये। कृष्ण ने यह कार्य महत्त्वपूर्ण किया कि युद्धक्षेत्र से पीठ फेरते अर्जुन को पीठ न फेरने दी और इस तरह क्षत्रिय धर्म और वीरत्वधर्म को कलंकित होने से बचा दिया।
____ यदि कोई व्यक्ति चमत्कार दिखाता है तो इससे सदाचार-सद्विचार को बहुत बड़ा धक्का लगेगा। आचार-विचार को इतना धक्का लगेगा कि साधना-दर्शन समाप्त हो जाएगा। भाग्य और पुरुषार्थ ये दोनों ही नहीं बचेंगे, यदि चमत्कार हो जाये । चमत्कार-शास्त्र कर्मशास्त्र के अस्तित्व को क्षति पहुँचायेगा, जबकि कर्मशास्त्र सबको मान्य है। हर घट-घट में पल-पल में कर्म की गति का दर्शन होता है। जो नियत है, उसे भूत, वर्तमान या भविष्य में अनियत नहीं किया जा सकता–ण एवं भूअं वा, भव्वं वा, भविस्सति वा। इसलिए चमत्कार कभी नहीं होता। भगवान् महावीर चमत्कार को कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो कि दिखा दे कि चमत्कार है। जहाँ-जहाँ चमत्कार है, वहाँ-वहाँ पक्षपात है। नियमों और सिद्धान्तों में भी जब पक्षपात होता है, तो वे नियम और सिद्धान्त किसी एक पक्ष से ही सम्बन्धित होते हैं, सार्वभौम नहीं हैं वे। सिद्धान्त शाश्वत होते हैं, चमत्कार शाश्वतता को क्षणभंगुर करने वाला है। शास्त्र कालप्रभाव से तिरोहित हो सकते हैं, किन्तु सिद्धान्त अमिट और अनन्त हुआ करते हैं। इसलिए चमत्कारों का अपवाद सिद्धान्त-विरुद्ध है।
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