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चमत्कार : एक भ्रमजाल
आभामण्डल ही है | जिसके आस-पास प्रभामण्डल नहीं है, वह शव है, मृतक है । हाँ ! यह सम्भव है कि किसी व्यक्ति का प्रभामण्डल विस्तृत हो और किसी का संकुचित; किसी का दृश्य और किसी का अदृश्य । वस्तुतः व्यक्ति जितना अधिक जीवन्त होता है, उसका प्रभामण्डल उतना ही अधिक विस्तृत और स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है । अब तो खैर इस प्रभामण्डल को हर आदमी देख सकता है । सन् १९३० में ऐसा रासायनिक प्रक्रियामूलक यन्त्र तैयार किया गया था, जिसके द्वारा हर किसीके प्रभामण्डल का — आभामण्डल का दर्शन किया जा सकता है । हम जो अब विज्ञान केवल - ज्ञान आदि की चर्चा करते हैं, वह वास्तव में इसी प्रभामण्डल की विस्तृतता है । जब किसी जीवन्त साधक को सुदूर की वस्तु को देखना या जानना होता है तो वह अपने इसी प्रभामण्डल को साधन बनाता है । वह अपने प्रभामण्डल की किरणों को एकत्र कर केन्द्रीभूत करता है । और वे दूरगामी किरणें उसे मनोवांछित तत्त्व का स्पष्ट अवलोकन करा देती है । हम दादा गुरुदेव को चमत्कारिक पुरुष कहते हैं, लेकिन दादा गुरुदेव ने कभी चमत्कार नहीं दिखाया । यदि दादा गुरुदेव को हम चमत्कारिक मानें तो उनका साधुत्व खत्म हो जायेगा । उनका आचार्यत्व समाप्त हो जायेगा । वे साधु नहीं, आचार्य नहीं, एक मदारी हो जाएँगे । ऐसे सन्त व्यक्ति को जैनागमों में परदर्शनी कहा है, वह जिनदर्शनी नहीं है । वह जैनत्व और साधुत्व — दोनों से च्युत है । इसलिए चमत्कार न तो स्वस्थ साधना है, न कोई शुद्ध आदर्श है । यह वैज्ञानिक भूमिका की बातें नहीं है । आज के वैज्ञानिक और प्रगतिशील युग में यह अन्धविश्वास मात्र है । इसमें आत्म-विश्वास का नामोनिशान नहीं है । आज भी लोग टोना-टोटका, जन्तर-मन्तर के फेर में पड़े रहते हैं । और, जो इनके जाल में एक बार फंस गया, तो वह मुक्त होने वाला नहीं । शायद हो जाये' – इसी आशंका और संभावना के भंवर में वह डूबता रहता है । वह चमत्कारों की माया में दिग्भ्रमित हो जाता है । पतंजलि की भाषा में वह व्यक्ति न सुषुप्त है, न जागृत - अपितु स्वप्नलोक की यात्रा पर है । सावचेत वह तब होता है जब उसे भयानक हानि होती है या निरर्थकता का बोध होता है ।
टोने-टोटके और जन्तर-मन्तर की बातें मैं बहुत बार सुनता- पढ़ता रहता हूं । जहाँ संसार आज कहाँ का कहाँ पहुँच रहा है, वहाँ कुछ लोग टोने-टोटकों के चमत्कार पाश में जकड़े वहीं के वहीं है, जहाँ वे सैकड़ों वर्ष पहले थे । लोगों द्वारा इन टोने - टोटकों में फँसकर अपनी तबीयत ठीक करने के लिए पशुओं की बलि देना, अधिक रुपया पाने की लालसा से घर का रुपया खो बैठना, माँ बनने के लिए बांझ द्वारा दूसरे के बच्चे की हत्या कर देना, अपने पति को वश में करने के लिए जन्तर-मन्तर करनाये सब कोरी अन्धनिष्ठा की बातें हैं । इनमें कोई सार नहीं है । गहराई से देखें तो
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