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चमत्कार : एक भ्रमजाल
के सारे तीर्थ कर, धर्म-प्रवर्तक क्षत्रिय और आज के सारे जैनी वणिक । तीर्थ कर चमत्कार के विरुद्ध आन्दोलन करता है और वणिक चमत्कारों में विश्वास । आज का जैनी चमत्कारों का अनुगमन मात्र है। जैनों में स्थानकवासी और तेरहपन्थी—ये लोग तो चमत्कार के फन्दे में सबसे ज्यादा जकड़े हैं। ये महावीर की मूर्ति को नहीं पूजेंगे, कहेंगे यह पत्थर है-घर सजाने का खिलौना। किन्तु यह कितने मजे की बात है कि ये लोग उन देवी-देवताओं के मन्दिर में दिन में अनेक बार जाकर नाक रगड़ेंगे, जो काफी चमत्कारिक माने जाते हैं। वे देवी-देवता फिर चाहे सम्यक्त्वधारी हो चाहे मिथ्यात्वी-इससे उनको कोई प्रयोजन नहीं है। फल यह हुआ कि वे न तो पूरे मूर्तिपूजक जैन हुए और न अमूर्तिपूजक। विचारे धोबी के गधे की हालत हो गई । धोबी का गधा न घर का न घाट का ।
__ ये लोग उसी धर्म को, उसी सन्त को, उसी भगवान को आदर देना चाहते हैं जो चमत्कारों से भरा है। मगर जिन व्यक्तियों के पास पराक्रम है, पुरुषार्थ है वे व्यक्ति चमत्कार को कभी नहीं मानेगे। जैनों के तीर्थ कर पुरुषार्थ भावना से ओतप्रोत होते हैं। हर असम्भव को सम्भव करने वाला ही सत्यतः तीर्थकर है। इसीलिए वे सबसे पहले इन्सान के रूप में ईश्वर बनते हैं, कैवल्य और सर्वज्ञता हासिल करते हैं ताकि संसार का प्रथम असम्भव कार्य सम्भव बन जाये और लोगों का इस बात से विश्वास हट जाये कि दुनिया में कोई चीज असम्भव भी है।
जिन्हें हम तीर्थ कर-अतिशय कहते हैं, वे अतिशय कोई चमत्कारिक आश्चर्य नहीं है। अनेक आधुनिक विद्वान उन्हें नहीं मानते। कहते हैं कि ये सब ढकोशला है परन्तु मैं इन्हें मानता हूं। जैसे तीर्थ कर मनुष्य होते हैं और उनके साथ जो अतिशय जोड़ते हैं, वे मानवमात्र में देखे जा सकते हैं। उदाहरणतः मैं आभामण्डल-प्रभामण्डल को लेता हूं। हम देखते हैं चित्रों में कि राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, शंकराचार्य या अन्य किसी महापुरुषों के आस-पास आभामण्डल चित्रित है । बहुत से सन्तों के चित्रों में भी प्रभामण्डल की रेखाएं दिखाई जाती हैं। सन्त हरिकेशबल चण्डाल थे, सन्त कबीर जुलाहा थे, सन्त गोरा कुम्हकार थे, रैदास जूता-चप्पल बनाते थे, फिर भी प्रभामण्डल दिखाते हैं हम उनके आस-पास। अनेक लोग या तो इसे कल्पना मानते हैं, या फिर कोई महान् चमत्कार। किन्तु मैं इसे न तो कल्पना की हवाई उड़ान समझता हूँ और न कोई चमत्कार । आप लोग जब सोकर उठे प्रातःकाल तब आँख खोलते ही इस प्रभामंडल की झलक देख सकते हैं। यदि उसका दर्शन करने का लक्ष्य है तो दर्शन हो सकता है। सूर्य की चकाचौंध में वह प्रभामण्डल दिख नहीं पाता। आज के विज्ञान के अनुसार यह प्रभामण्डल प्रत्येक व्यक्ति के आसपास रहता है। वैज्ञानिक तो कहते हैं कि यह प्रभामण्डल पशुओं और पेड़पौधे के पास भी होता है। वैज्ञानिक बताते हैं कि जीव तथा अजीव, चेतन तथा अचेतन को सिद्ध करनेवाला यह प्रभा या
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