Book Title: Samasya aur Samadhan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ प्रश्न है : भगवान महावीर ने अपने युग की तत्कालीन समस्याओं का समाधान किस रूप में प्रस्तुत किया और उन्हें क्या सफलता मिली ? उस युग के सन्दर्भ में उसका क्या नैतिक मूल्य हो सकता है ? प्रश्न महत्त्वपूर्ण है । भगवान महावीर को गहराई से समझना होगासमाधान के वातायन में, अन्यथा चूक जायेंगे। कारण, स्वयं महावीर के समय में भी बहुत लोग चूक गये थे। आप लोग भी चूक सकते हैं। मैं जो इस प्रश्न का समाधान दूंगा, फिर तो उसको समझना भी एक समस्या बन जायेगी। जो चके, वे नासमझ जिन्होंने समझा, उन्होंने जीवन की पहेलियों का हल पा लिया, समस्याओं का समाधान हासिल कर लिया। जो समस्याएं महावीर के युग में थीं, वैसी ही नयी नयी समस्याएं आज भी उभरी हुई हैं। हर युग नया है। हर युग को अपनी समस्याएं होती हैं। इसलिए हरेक समस्या का समाधान उस युग के सन्दर्भ में ही हो सकता है। किन्तु अनेक समस्याएं ऐसी भी होती हैं, जिनका सम्बन्ध युग से उतना नहीं, जितना उस युग में जीनेवाले प्राणियों से, उनके आचार-विचार से होता है। संसार समस्याओं का घर है, दलदल है। और, महावीर उस दलदल की गहराई से समीक्षा करने वाले कमल हैं। महावीर यानी जटिल से जटिलतम समस्याओं के समाधानकर्ता। __समाधान बाद में पहले समस्या को समझे। समस्या को समझे बिना समाधान की ओर बढ़ेंगे तो अन्त में फिर पूछेगे कि भगवान महावीर समस्याकर्ता थे या समाधान कर्ता। सारी रामायण सुनने के बाद लोग पूछ बैठते हैं कि सीता का हरण राम ने किया था या रावण ने ? मैंने सुना है कि एक ब्यक्ति के दो पुत्रियाँ थी। एक का विवाह कुम्भकार के घर हुआ और दूसरी का विवाह माली के यहां। एक बार उस व्यक्ति की इच्छा हुई कि चलो दोनों पुत्रियों से मिल आएँ और उनकी कोई आवश्यकता हो तो उसे पूरा कर दें। वह चला। पहले वह कुम्हार के यहाँ गया। दो दिन रहा वहाँ । रवाना होते समय उसने पुत्री से पूछा कि बोलो बिटिया ! तुम्हें क्या जरूरत है ? पुत्री ने कहा, पापाजी ! और तो सब ठीक है, कोई कमी नहीं है। बस, इन्द्र भगवान से यही प्रार्थना है कि यह बादलों की झिरमिर समाप्त हो जाए तो ये मिट्टी के बर्तन और घड़े पका लूं। उस व्यक्ति ने कहा कि अच्छा, मैं भी प्रार्थना करूंगा। अब वह व्यक्ति कुछ दिनों के बाद अपनी दूसरी पुत्री के यहाँ गया। वहाँ भी उसने लौटते समय पुत्री से पूछा कि बोलो, बिटिया ! तुम्हें क्या जरूरत है ? उसने कहा पापाजी ! और तो सब ठीक है, मगर इन्द्र भगवान से यही प्रार्थना है कि वह जल वृष्टि करे। क्योंकि पेड़-पौधे सब सूख रहे हैं। आप भी प्रभु से यही प्रार्थना करें। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110