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एक धन्य अवसर की प्राप्ति
JANUAR
स्वनामधन्या आगमवेत्ता प्रवर्तिनी महाराज सा० सज्जनश्रीजी का अभिनन्दन करते हुए आज कौन धन्य नहीं हो रहा है ? फिर मैं अकिंचन भी इस पावन गंगा में अवगाहन का लाभ प्राप्त करने में क्यों पीछे रहूँ ? यह एक ऐसा पुनीत अवसर अनायास ही हमारे हाथ आ गया है कि हमें अपने जीवन की कुछ तो सार्थकता दृष्टिगत होने लगी है। अन्यथा सांसारिक जीवन में ऐसे पुण्य अवसर प्रायः दुर्लभ ही होते हैं।
भुआसा. महाराज विदुषीवर्या सज्जनश्रीजी का जीवन प्रारम्भ से ही संयम और सात्विक भावों से ओत-प्रोत रहा है। बाल्यकाल से ही आपश्री संसार से उदासीन तथा अन्तमुखी रहीं। आपने तप- संयम, अध्ययन, एवं ज्ञान-दर्शन-चारित्र के क्षेत्र में जो उपलब्धियाँ अजित की हैं उनका वर्णन करने में हम अक्षम हैं। काव्य का क्षेत्र हो या कि दर्शन का, साधना का क्षेत्र हो या कि सामाजिक चेतना का कर्मक्षेत्र, संघ-संचालन का कार्य हो या एकांतिक तपस्या का, प्रवर्तिनीश्रीजी ने सभी दिशाओं में अपने अलौकिक अद्वितीय व्यक्तित्व और कृतित्व की अमिट छाप अकित की है । आज खरतरगच्छ धर्म संघ की प्रतिष्ठा, धर्मचेतना एवं प्रभावना की आप प्रकाश स्तम्भ बनी हुयी है। प्रवर्तिनी पद पर आसीन होकर आप अपनी गुरुवर्याश्री ज्ञानश्रीजी के बताये मार्ग को आलोकित एवं प्रसारित कर रही हैं। क्या श्रद्धालु श्रावक-श्राविका, क्या अनुगामिनी साध्वी-साधिकाएँ और क्या जन साधारण, सभी आपके विनम्र सरल व सहज व्यक्तित्व की छाया के नीचे अध्यात्म-अमृत का पानकर कृतार्थ हो रहे हैं।
मेरे दादाजी सेठ श्री गुलाबचन्दजी लूणिया जीवनपर्यन्त जैन शासन के निष्ठावान श्रावक रहे हैं। वे काव्यमर्मज्ञ, धर्ममर्मज्ञ एवं तत्त्वमर्मज्ञ श्रावकरत्न थे। उन्हीं की महान आत्मजा श्री सज्जनश्रीजी म. सा. आज उस गुलाब के सौरभ को अध्यात्मरस से परिपूर्ण मकरन्द की भाँति जन
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