Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
टीकार्थ-जनशासन के माहात्म्य का प्रकाशन एवं उसके तप-ज्ञानादि का अतिशय प्रकट करना चाहिए तथा जैन धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मावलम्बियों में अभिषेक, दान, पूजा, विधान, तप, मन्त्र-तन्त्रादि के विषय में अपनी आत्मशक्ति को न छिपाकर इनके विषय में जो अज्ञानरूप अन्धकार फैल रहा है उसको दूर करते हए तप-ज्ञानादि का अतिशय प्रकट करना प्रभावना अंग कहलाता है।
विशेषार्थ-अनादिकाल से संसारी जीव सर्वज्ञ वीतराग के द्वारा प्रकाशित समीचीन धर्म को नहीं जानते । क्योंकि जिस तरह अन्धकार के सर्वत्र व्याप्त हो जाने पर पास का भी पदार्थ दृष्टिगोचर नहीं होता, उसी प्रकार जब तक अज्ञान-मिथ्याज्ञान जीवों के अन्तरंग में व्याप्त रहता है तब तक निकटवर्ती अपना स्वरूप भी दिखाई नहीं पड़ता। वास्तव में, व्यक्ति अपने विषय में या तो अनध्यवसित या शंकित अथवा विपर्यस्त रहा करता है। इसलिए उसे अपना हित दिखाई नहीं देता । जिस तरह मलिन या काले वस्त्र पर कोई भी रंग नहीं चढ़ता, उसी प्रकार जब तक आत्मा मिथ्याज्ञान तिमिर से मलिन या काला हो रहा है तब तक उस पर वीतराग वाणी का कोई भी असर नहीं होता । क्योंकि वह कर्तव्य के भान से रहित है । मैं कौन है, मेरे करने योग्य कार्य कौनसे हैं तथा देव-गुरु-धर्म का स्वरूप कैसा है इत्यादि विचारों से रहित होते हुए मोहान्धकार से आच्छादित हो रहे हैं, उनको परमागम के प्रकाश के द्वारा प्रभावित करना तथा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र के द्वारा आत्मा का प्रभाव प्रकट करना प्रभावना कहलाती है, दान के द्वारा तप, शील, संयम, निर्लोभता, विनय, प्रिय वचन, जिनेन्द्र पूजन उनके गुणों के प्रकाशनादि से जिनधर्म के प्रभाव को प्रकट करना चाहिए। जिन उत्तमदानादि तथा घोर तपश्चरणादि को देखकर मिथ्यादृष्टि भी चकित हो जावें और प्रशंसा करने लगें कि देखो जैनों में वात्सल्यभावादि सहित बहत ही दानादि दिया जाता है तथा घोर तपश्चरण एवं व्रतादि किये जाते हैं और प्राण जाने पर भी वे अपने व्रतों को भंग नहीं करते, इस प्रकार से अन्य मतावलम्बी भी जैनधर्म के प्रभाव से प्रभावित हो जाते हैं और उनमें पवित्र भावों का संचार होने से उन्हें मिथ्या मान्यताओं को छोड़ने की रुचि हो जाती है। उन्हें भी सम्यग्दर्शन हो सकता है।
किसी भी जीव को एक बार भो कम से कम समय अन्तर्मुहर्त के लिए भी सम्यग्दर्शन हो जाता है तो संसार में कोई भी ऐसी शक्ति नहीं जो उसे अभीष्ट विजय
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