Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार आगे, परिग्रहविरति-अवत' का स्वरूप दिखलाते हुए कहते हैं
(धनधान्यादि ग्रन्थं) धन-धान्य आदि परिग्रह का (परिमाय) परिमाणकर (ततः) उससे ( अधिकेषु ) अधिक में ( निस्पृहता ) इच्छा रहित होना ( परिमित परिग्रहः) परिमितपरिग्रह अथवा ( इच्छापरिमाणनामापि ) इच्छापरिमाण नामका अणुव्रत (स्यात् ) होता है।
टोकार्थ-परिग्रह का परिमाण करने वाला परिग्रह परिमाणाणुव्रती कहलाता है। क्योंकि प्रमाण से अधिक में होने वाली इच्छा का निरोध हो गया। अपनी इच्छा से धन-गाय-भैसादि । धान्य-चावलादि । तथा आदि शब्द से दासी-दास स्त्री-मकान-खेत-नकद द्रव्य-सोना-चांदी आदि के आभूषण तथा वस्त्रादि के संग्रहरूप परिग्रह की संख्या का परिमाण कर उससे अधिक वस्तु में वाञ्छा-इच्छा नहीं रखना इसलिए इसका दूसरा नाम इच्छापरिमाणवत भी है ।
विशेषार्थ— परितः गृलाति आत्मानमिति परिग्रहः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो आत्मा को सब ओर से जकड़ ले उसे परिग्रह कहते हैं । स्त्री-पुत्र आदि चेतन वस्तु हैं । घर-स्वर्णादि अचेतन वस्तु हैं और बाह्य पुष्पवाटिका आदि तथा अभ्यन्तर मिथ्यात्व आदि चेतन-अचेतन हैं, ये चेतन या अचेतन अथवा चेतन-अचेतन बस्तुएँ मेरी हैं मैं इनका स्वामो हूँ, इस प्रकार के मानसिक अध्यवसाय को-ममत्वपरिणाम को परिग्रह कहते हैं। तत्त्वार्थसूत्र में भी मूच्छी को परिग्रह कहा है। उसकी व्याख्या करते हुए पूज्यपाद स्वामी ने सर्वार्थसिद्धि में कहा है-बाह्य गाय, भंस, मणि, मुक्ता आदि चेतनअचेतन वस्तुओं के तथा राग आदि अभ्यन्तर परिग्रहों के संरक्षण, उपार्जन, संस्कार
आदिरूप संलग्नता को मूर्छा कहते हैं। तो प्रश्न होता है कि यदि ममत्वपरिणामरूप मर्जी है तो बाह्य सम्पत्ति और स्त्री-पुत्रादि परिग्रह नहीं कहलायेंगे? इसके समाधान में कहा है कि आपका कहना सत्य है । ममत्वभाव ही प्रधान परिग्रह है। अतः उसी का ग्रहण किया है, बाह्यपरिग्रह के नहीं होने पर भी, 'जिसमें यह मेरा है' इस प्रकार का जो ममत्वभाब है वह परिग्रह है । पुन: प्रश्न हुआ कि तब तो बाह्य परिग्रह ही नहीं होता ? इसके उत्तर में कहते हैं कि बाप भी परिग्रह होता है। क्योंकि वह मर्जी का कारण है। स्त्री-पुत्र-धनादि के होने पर ममत्वभाव होता है और जहां ममत्वभाव हुआ, तत्काल उसके संरक्षण आदि की चिन्ता हो जाती है । अतः परिग्रह