Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
अतिवाहनातिसंग्रहविस्मयलोभाति भारवहनानि । परिमितपरिग्रहस्य च विक्षेपाः पञ्च लक्ष्यन्ते ॥ १६ ॥ १७ ॥
'विक्षेपा:' अतिचाराः । पंच 'लक्ष्यन्ते' निश्चीयन्ते । कस्य ? परिमितपरिग्रहस्य न केवलमहिंसाद्यणुव्रतस्य पंचातिचारा निश्चीयन्ते अपि तु परिमितपरिग्रहस्यापि । च शब्दोऽत्रापिशब्दार्थे । के तस्यातिचारा इत्याह-अतिवानेत्यादि । लोभातिगृद्धिनिवृत्त्यर्थं परिग्रह परिमाणे कृते पुनर्लोभावेश्वशादतिवाहनं करोति । यावन्तं हि मार्ग बलीवर्दादियः सुखेन गच्छन्ति ततोऽप्यतिरेकेण वाहनमतिवाहनं । अतिशब्दः प्रत्येकं लोभान्तानां सम्बध्यते । हवं धाविक शिस्तीति लोभावेशादतिशयेन तत्संग्रहं करोति । तत्प्रतिपन्नलाभेन विक्रीते तस्मिन् मूलतोऽप्य संगृहीत्वाधिकेऽर्थे लब्धे लोभावेशादतिविस्मयं विषादं करोति । विशिष्टेऽर्थे लब्धेऽप्यधिकलाभाकांक्षावशादतिलोभं करोति । लोभावेशादधिकभारारोपणमति भारवाहनं । ते विक्षेपाः पंच ||१६||
अब, परिग्रहपरिमाणाणुव्रत के अतिचार कहते हैं
( अतिवाहनातिसंग्रह विस्मयलोभातिभारवहनानि ) अतिवाहन, अतिसंग्रह, अतिविस्मय, अतिलोभ और अतिभारवाहन ( एते ) ये (पंच) पाँच ( परिमितपरिग्रहस्य च ) परिग्रहपरिमाणाणुव्रत के भी ( विक्षेपा: ) अतिचार ( लक्ष्यन्ते ) निश्चित किये जाते हैं ।
टोकार्थ - विक्षेप का अर्थ अतिचार है । जिस प्रकार अहिंसादि अणुव्रतों के पाँच-पाँच अतिचार बतलाये गये हैं । उसी प्रकार परिग्रहपरिमाणअणुव्रत के भी पाँच अतिचार निश्चित किये हैं । श्लोक में आया हुआ च शब्द 'अपि' अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । वे अतिचार इस प्रकार हैं- प्रतिवाहन लोभ की तीव्रता को कम करने के लिए परिग्रह का परिमाण कर लेने पर भी लोभ के आवेश से अधिक वाहन करता है अर्थात् बैल आदि पशु जितने मार्ग को सुखपूर्वक पार कर सकते हैं। उससे अधिक दूर तक उन्हें चलाना अतिवान कहलाता है । अति शब्द प्रत्येक में लगाना चाहिए । अतिसंग्रह -- यह धान्यादिक आगे जाकर बहुत लाभ देगा, इस लोभ के वश से जो अधिक संग्रह करता है उसका यह कार्य अति संग्रह नामक अतिचार है । प्रतिविस्मयसंगृहीत वस्तु को वर्तमान भाव से बेच देने पर किसी का मूल भी वसूल नहीं हुआ और दूसरा कुछ ठहर कर बेचता है तो उसके अधिक लाभ होता है, यह देखकर लोभ