Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
[ २६५ अल्पमपि दानमुचित काले । पात्रगत सत्पात्र दत्त । शरीरभृतां संसारिणां । इष्ट फलं बबनेकप्रकारं सुन्दररूप भोगोपभोगादि लक्षणं फलति । कथम्भूतं ? छायाविभवं छाया माहात्म्यं विभव : सम्पत् तो विद्यते यत्र । अस्यैवार्थस्य समर्थनार्थ क्षितीत्यादिष्टान्तमाह । क्षितिगतं सुक्षेत्रे निक्षिप्तं यथा अल्पमपि बटबीजं बहुफलं फलति । कथं ? छायाविभवं छाया आतपनिरोधिनी तस्या विभव: प्राचयं यथा भवत्येवं फलति ।। २६ ।।
कोई शंका करता है कि थोड़ासा दान इस प्रकार के विशिष्ट फल को कैसे सम्पन्न करता है, इस शंका को दूर करने के लिए कहते हैं---
( काले ) उचित समय में ( पात्रगतं ) योग्य पात्र के लिये दिया हआ (अल्पमपि) थोड़ा भी (दानं) दान (क्षितिगत) उत्तम पृथ्वी में पड़े हुए ( बटबीजमिव) वटवृक्ष के बीज के समान ( शरीरभुताम् ) प्राणियों के लिए ( छायाविभवं ) माहात्म्य और वैभव से युक्त, पक्ष में छाया की प्रचुरता से सहित (बह ) बहुत भारी (इष्ट) अभिलषित (फलं) फलको (फलति) फलता है।
टीकार्थ--सत्पात्र को दिया गया अल्प भी दान संसारी प्राणियों को सुन्दर रूप तथा भोगोपभोगादि अनेक प्रकार के इष्ट फल प्रदान करता है। दान के पक्ष में छाया विभवं का समास-- 'छाया माहात्म्यं विभवः सम्पत् तो विद्यते यत्र' यह फलका विशेषण है । छाया का अर्थ माहात्म्य होता है, और विभव का अर्थ सम्पत्ति होता है। छाया और माहात्म्य ये दोनों जिस फल में विद्यमान हैं उस फल की प्राप्ति दान देने से होती है । जिस प्रकार उत्तम भूमि में बोया गया छोटासा वट का बीज प्राणियों को बहुत भारी छाया और बहुत अधिक रूप में फल प्रदान करता है। 'छाया-आतपनिरोधिनी तस्या विभवः प्राचुर्य यथाभवत्येवं' इस प्रकार बटबीज पक्ष में छाया का अर्थ धूप का अभाव और विभव का अर्थ-प्राचुर्य अधिकता लिया गया है।
विशेषार्थ-समन्तभद्रस्वामी इस श्लोक में यह बतला रहे हैं कि योग्य पात्र के लिए योग्य समय पर थोड़ासा भी दिया गया दान अधिक फलदायी हो जाता है। यहां वटवृक्ष का दृष्टान्त देते हुए बतला रहे हैं, जैसे-वटका छोटासा बोज यदि योग्य समय पर योग्य भूमि में डाल दिया जाता है तो वह आगे समय पाकर बहुत भारी छाया के साथ-साथ अनेक इष्ट फल प्रदान करता है। यहां आचार्यश्री ने वट बीज का