Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 354
________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार ३३८ 1 प्राचार्य समन्तभद्रस्वामी ने प्रत्येक प्रतिमा का स्वरूप केवल एक श्लोक में ही कहा है । उन्होंने इस उत्कृष्ट श्रावक का भी स्वरूप एक श्लोक से ही कहा है कि घर से मुनियों के निकट बन में जाकर गुरु के पास व्रत ग्रहण करके जो भिक्षा भोजन करता है, तपस्या करता है, और खण्डवस्त्र धारण करता है वह उत्कृष्ट श्रावक है । चारित्रसार पृ० १६ पर कहा है-उद्दिष्टविरत श्रावक अपने उद्देश्य से बनाये गये भोजन, उपधि, शय्या, वस्त्र आदि ग्रहण नहीं करता । एक वस्त्र धारण करता है, भिक्षाभोजी है, दिन में एक बार बैठकर हस्तपुर में भोजन करता है। रात्रि में प्रतिमा योग धारण करता है, आतापन आदि योग धारण नहीं करता। प्राचार्य अमितगति ने कहा है कि उत्कृष्ट श्रावक वैराग्य की परमभूमि और संयम का घर होता है । यह सिर दाढ़ी और मूछ के बालों का मुण्डन करता है । मात्र लंगोटी (ऐलक) या फिर लंगोटी और चादर (क्षल्लक) रखता है। एक ही स्थान पर अन्न, जल ग्रहण करता है । यह पात्र हाथ में लेकर धर्म लाभ कहकर घरघर से भिक्षा याचना करता है । इस प्रकार अमितगति के अनुसार उत्कृष्ट श्रावक या तो अकेली लंगोटी रखता है या खण्ड वस्त्र के साथ लंगोटी रखता है । आचार्य बसनन्दी के श्रावकाचार में इसी आधार पर उसके दो भेद किये हैं प्रथम उत्कृष्ट श्रावक क्षुल्लक एक लंगोटी और एक उत्तरीय वस्त्र धारण करता है अर्थात् खण्डवस्त्र जिससे सिर से पैर तक पूरा अंग न ढ़के । मस्तक ढके तो पैर न ढके, और पैर ढके तो मस्तक न ढके, उसे खण्डवस्त्र कहते हैं। वह अपने दाढ़ी मूछ और सिर के बालों को कैंची या छुरे से कटावे । जीव-जन्तुओं की रक्षा के लिए कोमल वस्त्र या मयूरपिच्छी से स्थान, उपकरण आदि को मार्जन करके उठावे, रखे । निश्चल बैठकर पात्र में भोजन करे, तथा हाथ में पात्र लिये हुए श्रावक के घर जाकर उसके आंगन में खड़े होकर 'धर्मलाभ' कहकर भिक्षा की प्रार्थना करे । अथवा मौनपूर्वक अपना शरीर श्रावक को दिखाकर भिक्षा के मिलने या न मिलने में समभाव रखते हुए शीघ्र ही उस घर से दूसरे घर में आ जावे। अपनी उदरपूर्ति के लायक भिक्षा मिलने पर जहां प्रासुक जल प्राप्त हो वहां शोधन कर भोजन कर लेवे । आचार्य वसुनन्दी ने कहा है कि यदि इस प्रकार घर-घर भिक्षा मांगना न रुचे तो एक घर में ही मुनियों के पश्चात् दाता के घर जाकर भोजन करे। अन्तराय आने पर भोजन-पान का त्याग करे। दूसरा उत्कृष्ट श्रावक ऐलक है, इसकी चर्या क्षुल्लक के समान ही है । किन्तु ऐलक मात्र लंगोट रखते हैं, सिरके, दाढ़ी-मूछ के बालों को हाथों से उखाड़ते हैं, एषणा के दोषों

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