Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रनकरण्ड श्रावकाचार उदाहरण देना अधिक उपयुक्त समझा है क्योंकि सबसे अधिक वृद्धि वट वृक्ष की होती हुई देखी जाती है। उसी प्रकार सत्पात्र के लिए दिया गया थोडासा भी दान आगे चलकर समय पाकर विशिष्ट माहात्म्य ऐश्वर्य और भीगोपभोग की सम्पदारूप बहुत इष्ट फलों को प्रदान करता है।
दान में द्रव्य के साथ-साथ भावना का भी विशिष्ट माहात्म्य है । पात्रदान का अचिन्त्य फल है, पात्रदान के प्रभाव से सम्यक्त्व की उत्पत्ति हो सकती है । समत्व रशिमियादि की पारदानगो प्रभाव से उत्तम भोगभूमि में उत्पन्न हो जाते हैं, जहां पर तीन पल्य की आयु, शरीर की ऊंचाई तीन कोस, समचतुरस्रसंस्थान दस प्रकार के कल्प वृक्षों से सभी प्रकार की भोगोपभोग की वस्तुओं की प्राप्ति आदि होती है । भोगभूमि में स्त्री-पुरुष युगल ही उत्पन्न होते हैं। उत्तम भोगभूमि में तीन दिन के पश्चात् बैर फल के बराबर आहार करके भूख की वेदना शमित हो जाती है । यहां शीत-उष्ण की बाधा नहीं है, दिन-रात का कोई भेद नहीं है । सदा प्रकाश ही रहता है, शीतल मन्द सुगन्धित वायु सदा चलती रहती है। वहां की पृथ्वी रज, पाषाण, तृण, काटे, कीचड़ आदि से रहित है। स्फटिक के समान स्वच्छ भूमि रहती है, वहां पर रोग-शोक, बुढ़ापे का क्लेश नहीं है, कोई किसी का स्वामी, सेवक नहीं है। यहां स्त्री-पुरुष युगल का मरण भी साथ ही होता है, पुरुष को मरण के समय छींक और स्त्री को जम्भाई आती है और उसी समय संतान युगल का जन्म होता है, मातापिता का मरण हो जाता है । माता-पिता सन्तान का मुख नहीं देख पाते और सन्तान माता-पिता का मुख नहीं देखती । इसलिए इष्ट वियोगजनित दुःख भी नहीं होता।
आगम में पात्र तीन प्रकार के कहे हैं— उत्तमपात्र, मध्यमपात्र और जघन्यपात्र । उत्तमपात्र-दिगम्बर साधु, मध्यमपात्र प्रती श्रावक और जघन्यपात्र-अविरत सम्यग्दृष्टि श्रावक । पात्रदान के प्रभाव से सम्यग्दृष्टि स्वर्ग में उत्पन्न होता है । कूपात्र दान का फल कुभोगभूमि है और अपात्रदान का फल दुर्गति है ॥२६॥११६।।
तच्चैवंविधफलसम्पादकं दानं चतुर्भेदं भवतीत्याह--
आहारौषधयोरप्युपकरणावासयोश्च दानेन । वैयावृत्यं ब्रुवते चतुरात्मत्वेन चतुरसाः ॥२७॥