Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार समान ही हैं। किन्तु परव्यपदेश और कालातिक्रम ये दो अतिचार भिन्न हैं। दान स्वयं न देकर दूसरे दाता से दिलवाना परव्यपदेश है। अथवा स्वयं न देकर नौकर आदि से दिलवाना।
साधुओं के भिक्षा के समय को बिताकर अन्य समय में अतिथि की प्रतीक्षा करना, कालातिक्रम नामका अतिचार है। जो श्रावक मुनियों के भोजन के समय में भोजन न करके मुनियों के भोजन के समय से पहले या पीछे भोजन करता है उसके यह अतिचार होता है । इसलिए वैयावृत्य के पांच अतिचार टालकर महाविनय से शुद्ध दान देना चाहिए ।।३१।।१२१॥
इस प्रकार समन्तभद्रस्वामी द्वारा रचित उपासकाध्ययन की प्रभाचन्द्रविरचित
टीका में चतुर्थ परिच्छेद (शिक्षाप्रताधिकार) पूर्ण हुआ ।