Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
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और यहां आकर मणि मांगेगा। उस सेठ ने आकर उसी प्रकार कहा कि हे सत्यघोष पुरोहित ! मैं धन कमाने के लिए गया था । धनोपार्जन करने के बाद मेरे ऊपर बड़ा संकट आ पड़ा है इसलिए मैंने जो रत्न तुम्हें रखने के लिए दिये थे, वे रत्न कृपा कर मुझे दे दीजिये । जिससे जहाज फट जाने के कारण निर्धनता को प्राप्त मैं अपना उद्धार कर सकू। उसके वचन सुनकर कपटी सत्यघोष ने पास में बैठे हुए लोगों से कहा कि देखो, मैंने पहले आप लोगों से बात कही थी वह सत्य निकली। लोगों ने कहा कि आप ही जानते हैं, इस पागल को इस स्थान से निकाल दिया जावे। ऐसा कहकर उन्होंने समुद्रदत्त को घर से निकाल दिया। वह पागल है' ऐसा कहा जाने लगा । 'सत्यघोष ने मेरे पांच बहुमूल्य रत्न ले लिये हैं। इस प्रकार रोता हुआ बहू नगर में घूमने लगा। राजभवन के पास इमली के एक वृक्ष पर चढ़कर बह पिछली रात में रोता हुआ यही कहता था । यह करते हुए उसे छह माह निकल गये ।
एक दिन उसका रोना सुनकर रामदत्ता रानी ने राजासिंहसेन से कहा कि देव ! यह पुरुष पागल नहीं है। राजा ने भी कहा कि तो क्या सत्यघोष से चोरी की सम्भावना की जा सकती है । रानी ने फिर कहा कि देव ! उसके चोरी की सम्भावना हो सकती है। क्योंकि यह सदा यही बात कहता है। यह सुनकर राजा ने कहा कि यदि सत्यघोष पर चोरी की सम्भावना है तो तुम परीक्षा करो। आज्ञा पाकर रामदत्ता ने एक दिन राजा की सेवा के लिए आते हुए सत्यघोष को बुलाकर पूछा कि आज बहुत देर से क्यों आये हैं ? सत्यघोष ने कहा कि आज मेरी ब्राह्मणी का भाई पाहना बनकर आया था, उसे भोजन कराते हुए बहुत देर लग गई। रानी ने फिर कहाअच्छा ! यहां थोड़ी देर बैठो, मुझे बहुत शौक है । आज अक्षक्रीड़ा करें-जआ खेलें । राजा भी वहीं आ गये और उन्होंने कह दिया कि ऐसा हो करो।
तदनन्तर जब जए का खेल शुरू हो गया तब रामदत्ता रानी ने निपुणमति नामकी स्त्री से उसके कान में लगकर कहा कि तुम 'सत्यघोष पुरोहित जो कि रानी के पास बैठा है उन्होंने मुझे पागल के रत्न मांगने के लिये भेजा है' ऐसा उसकी ब्राह्मणी के आगे कहकर वे रत्न मांगकर शीघ्र लाओ। तदनन्तर निपुणमति ने जाकर वे रत्न मांगे, परन्तु ब्राह्मणी ने नहीं दिये, क्योंकि सत्यघोष ने उसे पहले ही मना कर रखा था कि किसी के मांगने पर रत्न नहीं देना । निपुणमति ने आकर रानी के कान में कहा कि वह नहीं देती है । अनन्तर रानी ने पुरोहित की अंगूठी जीत ली। उसे