Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
[२४७ चाहिए। क्योंकि शक्ति के अनुसार किया गया तप ही कल्याणकारी होता है। आशाधरजी ने भी जघन्य प्रोषध का स्वरूप वसुनन्दी के अनुसार ही किया है । इमली के रस के साथ भात के भोजन को आचाम्ल कहते हैं। जिससे जिह्वा और मन विकार युक्त हों ऐसे भोजन को विकृति कहते हैं। गोरस, इक्षुरस, फलरस और धान्यरस के भेद से विकृति के चार भेद हैं । दूध घी आदि को गोरस कहते हैं। खांड, गुड़ आदि को इक्षुरस कहते हैं । दाख आम आदि के रस को फलरस कहते हैं। तेल मांड आदि को धान्यरस कहते हैं। अथवा जिसके साथ खाने से स्वादिष्ट लगे बह विकृति है, विकार से रहित भोजन को निर्विकृति कहते हैं ।।१६।।१०६।!
उपवासदिने चोपोषितेन किं कर्तव्यमित्याहपञ्चानां पापानामलंक्रियारम्भगन्धपुष्पाणाम् । स्नानाञ्जननस्यानामुपवासे परिहृति कुर्यात् ॥१७॥
उपवासदिने परिहृति परित्यागं कुर्यात् । केषां ? पंचानां हिंसादीनां । तथा अलंक्रियारम्भगन्धपुष्पाणां अलंक्रिया मण्डनं आरम्भो वाणिज्यादिव्यापार: गन्धपुष्पाणामित्युपलक्षणं रागहेतूनां गीतनृत्यादीनां । तथा स्नानाञ्जननस्यानां स्नानं च अञ्जनं च नस्यञ्च तेषाम् ॥१७॥
- उपवास करने वाले व्यक्ति को उपवास के दिन क्या करना चाहिए यह कहते हैं
( उपवासे ) उपवास के दिन ( पञ्चानां पापानां ) पांच पापों का तथा ( अलंक्रियारम्भगन्धपुष्पाणां ) अलंकार धारण करना, खेती आदि का आरम्भ करना, चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों का लेप करना, पुष्पमालाएँ धारण करना या पुष्पों को सू घना ( स्नानाजननस्यानां ) स्नान करना, अञ्जन-काजल, सुरमा आदि लगाना तथा नाक से नास आदि का सूचना इन सबका ( परिहृति ) परित्याग ( कुर्यात् ) करना चाहिए।
टोकार्थ-उपवास करने वाले व्यक्ति को उपवास के दिन हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पाँच पापों का त्याग करना चाहिए । तथा शरीर-सज्जा, वाणिज्यादि च्यापार, गन्धपुष्प आदि के प्रयोग का और स्नान, अञ्जन, नस्यादि के