Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
[ १४३ (यत्) जो ( योगत्रयस्य ) तीनों योगों के ( कृतकारितानुमननात् ) कृत, कारित, अनुमोदनारूप ( संकल्पात् ) संकल्प से ( चरसत्त्वान् ) त्रस जीवों को ( न हिनस्ति) नहीं मारता है ( तत् ) उसे (निपुणाः) हिंसादि पापों के त्यागरूप व्रत के विचार करने में समर्थ मनुष्य ( स्थूलवधान विरमणं ) स्थूल हिंसा का त्याग अर्थात् अहिंसाणुव्रत (आहुः) कहते हैं ।
टोकार्थ-स्थूल हिंसा का त्यागी अहिंसाणुव्रती संकल्पपूर्वक त्रसजीवों का धात नहीं करता है।
'मैं इस जीव को मारू" इस अभिप्राय से जो हिंसा की जाती है, उसे संकल्प कहते हैं। यह संकल्प मन, वचन और काय इन तीनों योगों की कृत, कारित तथा अनुमोदनारूप परिणति से होता है। किसी कार्य को स्वतन्त्ररूप से स्वयं करना कृत है। दूसरे से कराना कारित है, और करने वाले के लिए अपने मानसिक परिणामों को प्रकट करते हुए अनुमति के वचन कहना अनुमोदना है। इस प्रकार यह कृत-कारितअनुमोदना मन, वचन कायरूप तीनों योगों से प्रकट होती है। यथा-१ मैं मन से वस जीवों की हिंसा स्वयं नहीं करता हूँ अर्थात् मैं त्रस जीवों को मारू ऐसा मन से संकल्प नहीं करता हूँ। २ दूसरों से त्रस हिंसा नहीं कराता है, अर्थात् 'तुम त्रस जीवों को मारों' ऐसा मन से संकल्प नहीं करता हूँ। ३ तथा त्रस जीवों की हिंसा करते हुए किसी जीव की मन से अनुमोदना नहीं करता हूँ अर्थात 'इसने यह कार्य अच्छा किया' ऐसा मन से संकल्प नहीं करता हूँ। ४ इसी प्रकार वचन से मैं स्वयं अस जीवों की हिंसा नहीं करता हूँ अर्थात् 'मैं त्रस जीवों को मारू' ऐसे वचन नहीं बोलता हूँ। ५ वचन से दूसरों के द्वारा प्रस जीवों को हिंसा नहीं कराता हूँ अर्थात् 'तुम बस जीवों को मारो' ऐसे वचनों का प्रयोग नहीं करता हूँ। ६ तथा प्रस जीवों की हिंसा करते हुए अन्य पुरुष को वचन से अनुमोदना नहीं करता हूँ अर्थात् 'तुमने बहुत अच्छा क्रिया' ऐसा वचनों से उच्चारण नहीं करता हूँ। ७ काय से उस जीवों की स्वयं हिंसा नहीं करता हूँ अर्थात् स्वयं आँख से संकेत करना मुट्ठी बाँधना आदि शारीरिक व्यापार नहीं करता है। ८ शरीर से दूसरे के द्वारा प्रस जीवों की हिसा नहीं कराता हूँ अर्थात शरीर के संकेत से दूसरे को प्रेरित नहीं करता हूँ। तथा ६ त्रस जीवों की हिंसा करते हुए किसी अन्य पुरुष को चुटकी बजाना आदि शरीर के अन्य किसी व्यापार से अनुमति नहीं देता हूँ । इन नौ कोटि से अस हिंसा का त्याग करना अहिंसाणवत है।