Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
[ १५१ मनुष्ठितं चेति बंचनानिमित्त कूटलेखकरणं कूटलेखक्रियेत्यर्थः । न्यासापहारिता द्रव्यनिक्षेप्तुविस्मृतसंख्यस्याल्पसंख्यं द्रव्यमाददानस्य एवमेवेत्यभ्युपगमवचनं । एवं परिवादादयश्चत्वारो ग्यासापहारिता पंचमिति सत्याणुनतस्य पंच व्यतिक्रमाः अतिचाराः भवन्ति ।। १० ।।
आगे सत्याणुव्रत के अतिचार कहते हैं---
(परिवादरहोऽभ्याख्यापैशुन्यं) मिथ्योपदेश, रहोभ्याख्या, पैशुन्य, ( कूटलेखकरणं च) कूटलेख लिखना (अपि च) और (न्यासापहारिता) धरोहर को हड़प करने के वचन कहना ये (पञ्च) पाँच (सत्यस्य) सत्याणुव्रत के ( व्यतिक्रमाः ) अतिचार ( सन्ति ) हैं।
टोकार्थ-परिवाद का अर्थ मिथ्योपदेश है अर्थात् अभ्युदय और मोक्ष की प्रयोजनभूत क्रियाओं में दूसरे को अन्यथा प्रवृत्ति कराना परिवाद या मिथ्योपदेश है। स्त्री-पुरुषों की एकान्त में की हुई विशिष्ट क्रिया को प्रकट करना रहोभ्याख्यान है । अंग विकार तथा भौंहों का चलाना आदि के द्वारा दूसरे के अभिप्राय को जानकर ईविश उसे प्रकट करना पैशुन्य है। इसे साकारमन्त्रभेद कहते हैं। दसरे के द्वारा अनुक्त अथवा अकृत किसी कार्य के विषय में ऐसे कहना कि यह उसने कहा है या किया है । इस प्रकार धोखा देने के अभिप्राय से कपटपूर्ण लेख लिखना कूटलेखकरण है तथा धरोहर रखने वाला व्यक्ति यदि अपनी वस्तु की संख्या को भूलकर अल्पसंख्या में ही वस्तु को मांग रहा है तो कह देना हाँ, इतनी ही तुम्हारी वस्तु है, ले लो, इसे न्यासापहारिता कहते हैं। इस प्रकार परिवादादिक चार और न्यासापहार मिलकर सत्याणुव्रत के पाँच अतिचार होते हैं।
विशेषार्थ-उमास्वामी प्राचार्य ने तत्वार्थसूत्र में सत्याणुव्रत के अतिचार इस प्रकार बतलाये हैं
'मिथ्योपदेशरहोऽभ्याख्यान कूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्र भेदाः' अर्थात् मिथ्योपदेश, रहोभ्याख्यान कूटलेखक्रिया, त्यासापहार और साकारमन्त्रभेद ये पांच सत्याणुनत के अतिचार हैं । समन्तभन्न स्वामी ने उमास्वामी आचार्य का अनुकरण तो किया है किन्तु कुछ अतिचारों में परिवर्तन भी किया है जैसे-सत्याणुब्बत के अतिचारों में परिवाद और पशुन्य इनको सम्मिलित किया है। और मिथ्योपदेश तथा साकारमन्त्र