Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
के विरोधी हैं । इसलिए मोक्ष निर्मोही के ही सम्भव है। मोक्ष की सिद्धि गृहस्थाश्रम से न होकर मुनिपद से ही होती है, गृहस्थ के पद से मुनिपद की विशेषता चारित्र पर ही निर्भर है, यह बात भी ठीक है फिर मा देशचारित्र हो या सकलचारित्र किन्तु उसकी सफलता एवं वास्तविकता सम्यग्दर्शनमूलक ही है । जिस प्रकार वृक्ष, बेल आदि अपने मूल के बिना टिके नहीं रह सकते, उसी प्रकार मोक्ष के लिए साधनभूत चारित्र की स्थिति सम्यग्दर्शन पर ही अवलंबित है। इसलिए निर्मोही-मिथ्यात्व से रहित गृहस्थ द्रव्य चारित्र को धारण करने वाले किन्तु दर्शनमोह से सहित मुनि की अपेक्षा श्रेष्ठ बतलाया गया है ।।३३।।
यत एवं ततःन सम्यक्त्वसमं किञ्चित्रकाल्ये त्रिजगत्यपि । श्रेयोऽश्रेयश्च मिथ्यात्वसमं नान्यत्तनुभताम् ॥३४॥
'तन भता' संसारिणां । 'सम्यक्त्वसम' सम्यक्त्वेन समं तुल्यं । 'श्रेयः श्रेष्ठमुत्तमोपकारकं । 'किंचित्' अन्यवस्तु नास्ति । यतस्तस्मिन् सति गृहस्थोऽपि यतेरप्युत्कृष्टतां प्रतिपद्यते । कदा तन्नास्ति ? 'काल्ये' अतीतानागतवर्तमानकालत्रये । तस्मिन क्व तन्नास्ति ? 'त्रिजगत्यपि' आस्तां तावन्नियतक्षेत्रादी तन्नास्ति अपितु त्रिजगत्यपि त्रिभुवनेऽपि । तथा 'अश्रेयो' अनुपकारकं । मिथ्यात्वसमं किंचिदन्यन्नास्ति । यतस्तत्सद्भावे यतिरपि व्रतसंयमसम्पन्नो गृहस्थादपि तद्विपरीतादपकृष्टतां बजतीति ।३४।
आगे, सम्यक्त्व के समान कल्याण और मिथ्यात्व के समान अकल्याण करने वाली दूसरी वस्तु नहीं है, यह बतलाते हैं
(तनभतां) प्राणियों के (काल्ये) तीनों कालों और ( त्रिजगत्यपि ) तीनों लोकों में भी (सम्यक्त्वसम) सम्यग्दर्शन के समान ( श्रेयः) कल्याणरूप (च) और (मिथ्यात्वसम) मिथ्यादर्शन के समान (अथ यः) अकल्याणरूप (अन्यत्) अन्य वस्तु ( न ) नहीं है।
टोकार्थ—संसारी जीवों के लिए भूत, भविष्यत् और वर्तमानरूप तीनों कालों में और अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक के भेद से तीनों लोकों में सम्यग्दर्शन के समान श्रेष्ठ उत्तम कल्याणकारक कोई दूसरी वस्तु नहीं है । क्योंकि सम्यक्त्व के रहने