Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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सनकरण्ड बाक्काचार
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'बोध: समीचीनः' सत्यं श्रुतज्ञानं । 'बोधति' जानाति । कं ? प्रथमानुयोगं । किं पुनः प्रथमानुयोग शब्देनाभिधीयते इत्याह- 'चरितं पुराणमपि एकपुरुषाश्रिता कथा चरितं त्रिषष्टिशलाका पुरुषाश्रिता कथा पुराणं तदुभयमपि प्रथमानुयोग शब्दाभिधेयं । तस्य प्रकल्पितत्वव्यवच्छेदार्थमर्थाख्यानमिति विशेषणं, अर्थस्य परमार्थस्य विषयस्याख्यानं प्रतिपादनं यत्र येन वा तं । तथा 'पुण्य' प्रथमानुयोगं हि शृण्वतां पुण्यमुत्पद्यते इति पुण्यहेतुत्वात्पुण्यं तदनुयोगं । तथा 'बोधिसमाधिनिधान' अप्राप्तानां हि सम्यग्दर्शनादीनां प्राप्ति बोधिः प्राप्तानां तु पर्यन्तप्रापणं समाधिः ध्यानं वा धर्म्यं शुक्लं च समाधिः तयोनिधानं । तदनुयोगं हि शृण्वतां सद्दर्शनादेः प्राप्तत्यादिकं धर्म्यध्यानादिकं च भवति ।। २ ।।
आगे, विषय भेद की अपेक्षा सम्यग्ज्ञान के भेदों का वर्णन करते हुए सर्व प्रथम प्रथमानुयोग का लक्षण कहते हैं
( समीचीनः बोधः ) सम्यक् श्रुतज्ञान ( अर्थ खियानं ) परमार्थ विषय का कथन करने वाले (चरितं ) एक पुरुषाश्रित कथा (अपि) और (पुराण) शठशलाका पुरुष सम्बन्धी कथारूप (पुण्यं ) पुण्यवर्धक तथा ( बोधिसमाधिनिधानं ) बोधि और समाधि के निधान (प्रथमानुयोगं ) प्रथमानुयोग को ( बोधति) जानता है ।
टीकार्थ- सम्यग्श्रुतज्ञान प्रथमानुयोग को जानता है । जिसमें एक पुरुष से सम्बन्धित कथा होती है वह चरित्र कहलाता है, और जिसमें शठशलाका पुरुषों से सम्बन्ध रखने वाली कथा होती है उसे पुराण कहते हैं । चरित्र और पुराण ये दोनों ही प्रथमानुयोग शब्द से कहे जाते हैं। यह प्रथमानुयोग कल्पित अर्थ का वर्णन नहीं करता, किन्तु परमार्थभूत विषय का प्रतिपादन करता है इसलिए इसे प्रर्थाख्यान कहते हैं। इसको पढ़ने और सुनने वालों को पुण्य का बन्ध होता है इसलिए इसे पुण्य कहा है । तथा यह प्रथमानुयोग बोधि अर्थात् सम्यग्दर्शनादिरूप रत्नत्रय की प्राप्ति और समाधि - अर्थात् धर्म्यं और शुक्लध्यान की प्राप्ति का निधान- खजाना है । इस प्रकार इस अनुयोग को सुनने से सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति और धर्म्यध्यानादिक होते हैं ।
विशेषार्थ - प्रथमानुयोग जिनवाणी का एक प्रमुख अंग है । प्रथमानुयोग का अर्थ है कि प्रथम अर्थात् मिध्यादृष्टि या अत्रतिक अव्युत्पन्न श्रोताओं को लक्ष्य करके जो प्रवृत्त हो। इसमें त्रेसठशलाका पुरुषों आदि का वर्णन किया गया है । कथाओं के