Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
१४० ]
रत्नकरण्ड श्रावकाचार यथायोग्य ईर्या, भाषा, एषणा आदान निक्षेपण और उत्सर्ग इन पांच समितियों का भी पालन करता है । ये समितियों मुनियों के ही लिए नहीं हैं, किन्तु मुनि बनने के इच्छुक श्रावक को भी इनका अभ्यास करना चाहिए । आगम में कहा है कि यदि अणुवत और महाव्रत समिति के साथ होते हैं तो संयम कहलाता है और यदि समिति के साथ नहीं होते तो उन्हें केवल विरति कहते हैं । मुमुक्षु श्रावक को श्रुतज्ञानी भी होना चाहिए । गुरु महाराज के कहने से व्रत धारण कर व्रतों का ठीक-ठीक स्वरूप ज्ञात करना चाहिए ।। ५ ।। ५१ ।।
तत्रागुव्रतस्य तावत्पंचभेदान् प्रतिपादयन्नाहप्राणातिपातवितथव्याहारस्तेय काममूर्छाभ्यः । स्थूलेभ्यः पापेभ्यो व्युपरमणमणुजतं भवति ॥६॥
'अणुव्रत' विकलव्रतं । किं तत् ? 'ट्युपरमणं' व्यावर्तनं यत् । केभ्यः इत्याह'प्राणेत्यादि' प्राणानामिन्द्रियादीनामतिपातश्चातितनं वियोगकरण विकाशन । विाय. ध्याहारश्च' वितथोऽसत्यः स चासो व्याहारश्च शब्दः । 'स्तेयं' च चौर्य । 'कामश्च' मैथुनं । 'मू ' च परिग्रहः मूर्छा च मूच्छय ते लोभावेशात परिगृह्यते इति मूर्छा इति व्युत्पत्त: । तेभ्यः । कथंभूतेभ्यः ? 'स्थूलेभ्यः' । अणुव्रतधारिणो हि सर्वसावद्यविरतेरसम्भवात् स्थूलेभ्य एव हिंसादिभ्यो व्युपरमगं भवति । स हि त्रस प्राणातिपातानिवृत्तो न स्थावरप्राणातिपातात् । तथा पापादिभयात् परपीडादिकारणमिति मत्वा स्थूलादसत्यवचन् निवृत्तो न तद्विपरीतात् । तथान्यपीडाकरात् राजादिभयादिना परेण परित्यक्तादप्यदत्तार्थात् स्थूलानिवृत्तो न तद्विपरीतात् । तथा उपात्ताया अनुपात्तायाश्च परांगनायाः पापभयादिना निवृत्तो नान्यथा इति स्थूलरूपाऽब्रह्मनिवृत्ति: तथा धनधान्यक्षेत्रादेरिच्छावशात् कृतपरिच्छेदा इति स्थूलरूपात् परिग्रहान्निवृत्तिः । कथंभूतेभ्यः प्राणातिपातादिभ्यः ? 'पापेभ्यः' पापास्रवणद्वारेभ्यः ।।६।।
अणुव्रत के पांच भेदों का वर्णन करते हुए कहते हैं
( प्राणातिपातवितथव्याहारस्तेयकाममूच्छन्यिः ) हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और मूर्छा इन (स्थूलेभ्यः) स्थूल ( पापेभ्यः ) पापों से ( व्युपरमणं ) विरत होना (अणुव्रतं) अणुव्रत (भवति) है।