Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
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( निर्मोह : ) मोह - मिथ्यात्व से रहित ( गृहस्थः ) गृहस्थ ( मोक्षमार्गस्थ : ) मोक्षमार्ग में स्थित है परन्तु ( मोहबान् ) मोह- मिथ्यात्व से सहित ( अनगार: ) मुनि ( नव) मोक्षमार्ग में स्थित नहीं है ( मोहिनः ) मोही मिध्यादृष्टि ( मुने: ) मुनि की अपेक्षा ( निर्मोहः ) मोह रहित सम्यग्दष्टि (गृही ) गृहस्थ ( श्रेयान् ) श्रेष्ठ है ।
टोकार्थ - जो गृहस्थ सम्यग्दर्शन का घात करने वाले मोहनीय कर्म से रहित होने के कारण सम्यग्दर्शनरूप परिणत है वह तो मोक्षमार्ग में स्थित है, किन्तु जो यति दर्शन मोह - मिथ्यात्व से सहित है वह मोक्षमार्ग में स्थित नहीं है इस प्रकार मिथ्यात्व - युक्त मुनि की अपेक्षा सम्यक्त्व सहित गृहस्थ श्रेष्ठ है ।
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सिद्धि चाहने वाले के
विशेषार्थ - इस कारिका के द्वारा आचार्य यह बतलाना चाहते हैं कि सर्व साधारण जीवों की जो यह समझ है कि हिंसादि पंचपाप हो संसार के कारण हैं और मात्र इनका परित्याग कर देना मोक्षमार्ग है । किन्तु बाह्यपाप प्रवृत्तियों का परित्याग करने को ही मोक्षमार्ग मानना सत्य नहीं है, इतना अवश्य है कि मोक्षमार्ग को सिद्ध करने के लिए इन पापों का परित्याग अवश्य करना पड़ेगा लक्ष्य में यह बात भी आनी चाहिए कि इतने त्याग मात्र से मोक्ष की सिद्धि नहीं हो सकती, जब तक इन पापों के मूलभूत महापाप मोह का त्याग नहीं होगा। संसार के सभी पापों का उद्गम स्थान मोह है और उसके अभाव का नाम ही सम्यग्दर्शन है । जिसके बिना अन्य पाप प्रवृत्तियों का पूर्णतया परित्याग करके भी परिनिर्वाण की सिद्धि नहीं हो सकती ।
यद्यपि मोक्ष का अत्यन्त निकटवर्ती साधन सम्यक्चारित्र है और सम्यक्चारित्र सम्यग्दर्शन के बिना हो नहीं सकता इसलिए मोक्ष सिद्धि की सफलता सम्यदर्शन पर ही निर्भर है यही इस कारिका का प्रयोजन है। यहां निर्मोह से प्रयोजन दर्शन मोह- मिथ्यात्व से है । इस मोह से जो निकल गया है वह निर्मोह है । जहाँ निर्मोहता है वहाँ मोक्षमार्ग में स्थिति अवश्य है फिर चाहे वह गृहस्य हो या मुनि, अथवा किसी गति का जीव । यदि निर्मोहता नहीं है तो मोक्षमार्ग में स्थिति भी नहीं है | चाहे वह अणुव्रती हो या महाव्रती । व्रत तो मोह की मन्द मन्दतर- मन्दतम उदय की अवस्था में भी हो सकते हैं और सर्वथा उदय के अभाव में भी होते हैं । किन्तु जब तक मिथ्यात्व का उदय विद्यमान है तब तक मोक्षमार्ग में स्थिति नहीं मानी जा सकती । क्योंकि मोह और मोक्ष दोनों का सहानवस्था विरोध है। दोनों ही एक-दूसरे