Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
रत्नार बाधकाचार
[ ९५ है। इसी कारण मोक्षमार्ग में ज्ञान और चारित्र की अपेक्षा सम्यग्दर्शन को श्रेष्ठता या उत्कृष्टता प्राप्त होती है।
विशेषार्थ-इस कारिका में ज्ञान और चारित्र की अपेक्षा सम्यग्दर्शन का विशिष्ट महत्त्व दर्शाया गया है। यदि इसकी महत्ता नहीं होती तो सम्यक्त्व निरपेक्षज्ञान चारित्र में भी मोक्षमार्गत्व माना जा सकता था किन्तु ऐसा नहीं है। सम्यक्त्व रहित ज्ञान, चारित्र वास्तव में मुख्यरूप से मोक्ष के कारण नहीं हैं। सम्यक्त्व के बिना ज्ञान चारित्र में समीचीनता नहीं आती। परन्तु समीचीन ज्ञान चारित्र के बिना सम्यग्दर्शन तो होता है। यद्यपि धर्म रत्नत्रयात्मक ही है जैसा कि पहले बतलाया गया है तथा मोक्ष या संसारनिवृत्ति के हेतुभूत तीनों मिलकर हैं। एक या दो से निर्वाण की सिद्धि नहीं हो सकती, तीनों मिलकर ही मोक्ष के मार्ग बनते हैं। फिर भी इनमें से सर्ब प्रथम कारण सम्यग्दर्शन को ही बतलाया है । जान चारित्र इन दोनों की अपेक्षा सम्यग्दर्शन की साधुता अधिक प्रशस्त है और उत्कृष्ट है । यह ज्ञान, चारित्र का स्वामी है इसलिए सम्यग्दर्शन को आचार्य ने कर्णधार की उपमा दी है, जिस प्रकार नाव चलाने वाला मल्लाह हाथ में लकड़ी का दण्डा लेकर ही नाव को नदी में चलाता है। दण्डे को कर्ण कहा जाता है, उसके सहारे से खेवटिया नाव को चलाकर नदी के किनारे लगा देता है अर्थात् नाव में बैठे हुए व्यक्ति किनारे पहुँच कर अपने इच्छित स्थान पर पहुँच जाते हैं । उसी प्रकार संसाररूपी समुद्र में चारित्ररूपी नाव को खेवटियारूपी ज्ञान. दण्ड स्थानीय सम्यग्दर्शन के द्वारा चलाकर संसार के किनारे पहुँचा देता है और उस रत्नत्रय का धारक जीव मुक्ति प्राप्त कर सदा के लिए संसार के दुःखों से परिमुक्त हो जाता है । इस तरह मोक्षमार्ग की सिद्धि में तीनों का साहचर्य है फिर भी तीनों में प्रधान सम्यग्दर्शन ही है । जिस तरह राज्य संचालन करने में राजा मंत्री और सेनापति तीनों ही सहचारी हैं फिर भी स्वतन्त्रता और नेतृत्व के कारण उनमें राजा को ही मुख्य माना जाता है । मंत्री अपने बुद्धि बल से उचित-अनुचित मंत्रणा देता है और सेनापति शत्रुओं का विध्वंस करके राजा के कार्य में सहायक बनकर अनुकूल प्रवृत्ति करता है । इसी प्रकार ज्ञान और चारित्र दर्शन की आज्ञानुसार चलते हैं अर्थात् उसी का अनुसरण करते हैं क्योंकि वह स्वतन्त्र है । यद्यपि आत्मा में अनन्तगुण हैं किन्तु उनमें से ये तीन मुण ऐसे हैं जो मिलकर अपने स्वामी आत्मा को दुःखमय संसार से छुड़ाकर उत्तम सुखमय अवस्था को प्राप्त करा सकते हैं।