Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
रत्नकरण्ड श्रावकाचार
[ ५९ निकल आया। हार के प्रकाश से 'यह चोर है' ऐसा जानकर गृह के रक्षकों तथा कोतवालों ने उसे पकड़ना चाहा । जब वह चोर भागने में असमर्थ हो गया तब बारिषेणकुमार के आगे उस हार को डालकर छिपकर बैठ गया। कोतवाल ने उस हार को वारिषेण के आगे पड़ा देखकर राजा श्रेणिक से कह दिया कि 'राजन् ! बारिषेण चोर है ।' यह सुनकर राजा ने कहा कि इस मूर्ख का मस्तक छेदकर लाओ। चाण्डाल ने वारिषेण का मस्तक काटने के लिए जो तलवार चलाई तो वह उसके गले में फूलों की माला बन गयी। उस अतिशय को सुनकर राजा श्रेणिक ने जाकर वारिषेण से क्षमा मांगी। विद्युच्चर चोर ने अभयदान पाकर राजा से जब अपना सब वृत्तान्त कहा तब वह बारिषेण को घर ले जाने के लिए उद्यत हुआ। परन्तु बारिषेण ने कहा कि अब तो मैं पाणिपात्र में भोजन करूगा अर्थात् दिगम्बर मुनि बनगा। तदनन्तर वह सूरसेन गुरु के समीप मुनि हो गया । एक समय बारिषेण मुनि राजगह के समीपवर्ती पलाशकूट ग्राम में चयों के लिए प्रविष्ट हुए। वहां राजा श्रीणिक के अग्निभूति मंत्री के पुत्र पुष्पडाल ने उन्हें पड़ गाहा । चर्या कराने के बाद वह अपनी सोमिल्ला नामक स्त्री से पूछकर स्वामी का पुत्र तथा बाल्यकाल का मित्र होने के कारण कुछ दूर तक भेजने के लिए वारिषेण के साथ चला गया । अपने लौटने के अभिप्राय से वह क्षीरवृक्ष आदि को दिखाता तथा बार-बार मुनि को वन्दना करता था। परन्तु मुनि हाथ पकड़कर उसे साथ ले गये और धर्म का विशिष्ट उपदेश सुनाकर तथा वैराग्य उपजाकर उन्होंने उसे तप ग्रहण करा दिया । तप धारण करने पर भी वह सोमिल्ला स्त्री को नहीं भूलता था ।
पुष्पडाल और वारिषेण दोनों ही मुनि बारह वर्ष तक तीर्थयात्रा कर भगवान वर्धमान स्वामी के समवसरण में पहुंचे। वहां वर्धमान स्वामी और पृथ्वी से सम्बन्ध रखने वाला एक गीत देवों के द्वारा गाया जा रहा था । उसे पुष्पडाल ने सुना। गीत का भाव यह था कि जब पति प्रवास को जाता है तब स्त्री खिन्न चित्त होकर मैलीकुचैली रहती है। परन्तु जब वह घर छोड़कर ही चल देता है तब वह कैसे जीवित
रह सकती है ?
पुष्पडाल ने यह गीत अपने तथा सोमिल्ला के सम्बन्ध में लगा लिया इसलिए वह उत्कण्ठित होकर चलने लगा। वारिषेण मुनि यह जानकर उसका स्थितीकरण करने के लिए उसे अपने नगर ले गये। चेलिनी ने उन दोनों मुनियों को देखकर विचार किया