Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
कारयित्वा स सोमिल्लां निजभार्यां पृष्ट्वा प्रभुपुत्रत्वाद् बालसखित्वाच्च स्तोकं मार्गानु व्रजनं कतु वारिषेणेन सह निर्गतः । आत्मनो व्याघुटनार्थं क्षीरवृक्षादि क दर्शयन् मुहुर्मुहुर्वन्दनां कुर्वन् हस्ते धृत्वा नीतो विशिष्ट धर्मश्रवणं कृत्वा वैराग्यं नीत्वा तपो ग्राहितोऽपि सोमिल्लां न विस्मरति । तो द्वावपि द्वादशवर्षाणि तीर्थयात्रां कृत्वा वर्धमान स्वामिसमवसरणं गतौ । तत्र वर्धमानस्वामिनः पृथिव्याश्च सम्बन्धिगीतं देवर्गीय - मानं पुष्पडालेन श्रुतं । यथा
" महलकुचेली दुम्मनी नहिं पविसियएण । कह जीवेसइ धणिय, घर उज्झते हियएण 11 "
एतदात्मनः सोमिल्लायाश्च संयोज्य उत्कण्ठितश्चलितः । स वारिषेणेन ज्ञात्वा स्थिरीकरणार्थं निजनगरं नीतं । चेलिन्या तौ दृष्ट्वा वारिषेणः किं चारित्राच्चलित: आगच्छतीति संचिन्त्य परीक्षणार्थं सरागवीतरागे द्वे आसने दत्तं । वीतरागासने बारिपेणेनोपविश्योक्तं मदीयमन्तः पुरमानीयतां । ततश्चेलिन्या महादेव्या द्वात्रिंशद्भार्याः सालंकारा आनीताः । ततः पुष्पडालो वारिषेणेन भणितः स्त्रियो मदीयं युवराजपदं च त्वं गृहाण । तच्छ्रुत्वा पुष्पडालो अतीव लज्जितः परं वैराग्यं गतः । परमार्थेन तपः तु लग्न इति ॥ ६ ॥
वारिषेण की कथा
मगधदेश के राजगृह नगर में राजा श्रेणिक रहता था । उसकी रानी का नाम चेलिनी था। उन दोनों के वारिषेण नाम का पुत्र था । वारिषेण उत्तम श्रावक था । एक बार वह उपवास धारण कर चतुर्दशी की रात्रि में श्मशान में कायोत्सर्ग से खड़ा था । उसी दिन बगीचे में गयी हुई मगधसुन्दरी नामक वेश्या ने श्रीकीर्ति सेठानी के द्वारा पहना हुआ हार देखा । तदनन्तर उस हार को देखकर 'इस आभूषण के बिना मुझे जीवन से क्या प्रयोजन है' ऐसा विचार कर वह शय्या पर पड़ गयी । उस वेश्या में आसक्त विद्युच्चर चोर जब रात्रि के समय उसके घर आया तब उसे शय्या पर पड़ी देख बोला कि प्रिय इस तरह क्यों पड़ी हो ? वेश्या ने कहा कि 'यदि श्रीकीर्ति सेठानी का हार मुझे देते हो तो मैं जीवित रहूंगी और तुम मेरे पति होओगे अन्यथा नहीं ।' वेश्या के ऐसे वचन सुनकर तथा उसे आश्वासन देकर विद्युच्चर चोर आधी
रात के समय श्रीति सेठानी के घर गया और अपनी चतुराई से हार चुराकर बाहर