Book Title: Ratnakarand Shravakachar
Author(s): Samantbhadracharya, Aadimati Mata
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
'भयाशास्नेहलोभाच्च' भयं राजादि जनितं, आशा च भाविनोऽर्थस्य प्राप्त्याकांक्षा, स्नेहश्च मित्रानुरागः, लोभश्च वर्तमानकालेऽर्थप्राप्तिगृद्धिः भयाशास्नेहलोभं तस्मादपि । च शब्दोऽप्यर्थः || ३० ॥
सम्यग्दर्शन को धारण करने वाले जीव को प्रारम्भ से ही उसमें मलिनता नहीं करनी चाहिए, यह कहते हैं
( शुद्धदृष्टयः ) निर्मल सम्यग्दृष्टि जीव ( भयाशा स्नेहलोभात् च ) भय, आशा स्नेह और लोभ से भी ( कुदेवागमलिंगिनाम् ) मिथ्यादेव, मिथ्याशास्त्र और कुगुरु को ( प्रणामं ) नमस्कार (च) और (विनयं) विनय भी ( न कुर्युः) न करें ।
टीकार्थ --- राजा आदि से उत्पन्न होने वाले आतंक को भय कहते हैं । भविष्य में धनादिक-प्राप्ति की वांछा श्राशा कहलाती है । मित्र के अनुराग को स्नेह कहते हैं । वर्तमानकाल में धन प्राप्ति की जो गृद्धता - आसक्ति होती है उसे लोभ कहते हैं । जिसका सम्यक्त्व निर्मल है ऐसा शुद्ध सम्यग्दृष्टि जीव इन चारों कारणों से अर्थात् भय, आशा, स्नेह, लोभ के वश से कुदेव, कुशास्त्र और कुगुरु को न तो प्रणाम करे - मस्तक झुकाकर नमस्कार करे और न उनकी विनय करे- हाथ जोड़े तथा न प्रशंसा आदि के वचन कहे ।
विशेषार्थ – शुद्ध सम्यग्दर्शन का वर्णन करते हुए आचार्यश्री ने सबसे प्रथम आठ अंगों का वर्णन किया है, उसमें निःशंकितादि चार निषेधरूप अंगों के द्वारा अतिचार रहितपना आवश्यक है, इस बात को बतलाया है । तथा उपगूहनादि चार विविधरूप अंगों का वर्णन करके इस बात को बतलाया है कि सम्यग्दृष्टि की अन्तरंग और बहिरंग प्रवृत्ति किस प्रकार की होती है और होनी चाहिए। तथा उसका इस प्रकार का व्यवहार देखकर उसके अविनाभावी सम्यग्दर्शन के अस्तित्व का अनुमान भी किया जा सकता है ।
सम्यग्दृष्टि के इस लोक भय, परलोक भय आदि सप्त भय नहीं होते हैं, आगे के लिए किसी विषय को प्राप्त करने की आकांक्षा करना आशा है, स्नेह का सम्बन्ध रागकषाय से है, किसी वस्तु के प्राप्त करने की उत्कट भावना लोभ है । सम्यग्दृष्टि भय, आशा, स्नेह और लोभ के वश से कुदेव कुशास्त्र और कुगुरु पाखण्डी को न तो प्रणाम करे और न इनकी विनय करे । सम्यग्दर्शन को समल बनाने वाली उपर्युक्त चार प्रवृत्तियाँ हैं जो तीव्र कषाय के परिणाम स्वरूप होती हैं । इनमें से किसी भी कारणवश कुदेवादि को प्रणामादि करने पर सम्यग्दर्शन मलिन होता है ।
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