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प्रवचन सुधा
हृदय में धारण कर लो और तदनुसार प्रवृत्ति करने लगा | अचान यदि कोई उसे कुछ भला-बुरा कहना, तो वह उनके हने को बुरा नहीं मानता । प्रत्युत यह नोचना है कि मुज से बढकर कोई दूसरा बुरा नहीं है और मुझमे बढकर कोई भला भी नहीं है । मै तो मदा मनू-चिजानन्दमय ह । मेरे भीतर जो चिन्ता, भय, आशा और लोमादिन दुर्गुण थे, दे
की कृपा से निकल गये है। जब वह किवि भी नहीं करना है और वने हमकर बोलता है । यदि कोई उसकी निन्दा भी करता है तो भी वह उसे हसकर ही बोलता है। उसके इस परिवर्तन से उम्दा या और फैन गया और सब लोग कहने लगे अर, यह तो गृहम्याश्रम मे रहते हुए भी महात्मा बन गया है । अव सभी लोग उसे बहुत भाता आदमी मानने नगे ।
भाई, मसार में कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें दूसरों का उत्वर्य, यश या बडप्पन सहन नही होता है । उसके पडीम में भी एक ऐसा ही व्यक्ति रहता या । उसे इसका यश महन नही हुआ और उसने प्रतिदिन प्रात काल अपने घर का वूड़ा-कचरा उसके घर के आगे डालना प्रारम्भ कर दिया। वह बिना कुछ कहे उसे उठाकर कचरा घर में फेंक जाता । यह देख उसकी स्त्री कहने लगी- आप उन कचरा डालनेवाले ने कुछ भी नहीं कहते हैं ? पर वह उत्तर देता, यदि वह अपना स्वभाव नहीं छोड़ता है, तो में क्यों अपना स्वभाव छोड ? अपना कचरा उठाकर कूड़ा घर मे डालना ही पडता है, फिर जग-सा और उठाकर डाल देने मे क्या कष्ट है ? फिर जिम चबूतरी पर वह कचरा डालता है, वह तो पत्थर की बनी है । वह मेरी आत्मा पर तो नहीं अल सकता है । इसलिए अपन को समभाव में रहना चाहिए। दुनिया की जैसी मर्जी हो, वह वैसी करती रहे । उससे अपना क्या बनता - बिगडता है। इसप्रकार इस व्यक्ति ने स्नी को समझाकर शान्त कर दिया और स्वयं भी गान्ति मे रहने
लगा ।
धीरे धीर उस पटीयों की हरकते दिन पर दिन बटने लगी। अब वह मकान के भीतर भी अपना कचरा डालने लगा | उसके ग्राहकको काने लगा और उसकी बदनामी भी करने लगा । परन्तु यह शान्तिपूर्वक इन तव बातो को महन करता रहता और अपने गुरुदेव के द्वारा दिये हुए मन का पालन करता हुआ अपने मे मन्त रहता । इस प्रकार दोनो अपने-अपने स्वभाव से काम करते रह और पाच वर्ष बीत गये । सव नगर निवासी कहने लगे कि दो - यह पडीसी कितना नीच है जो वर्षों मे उसके घर पर कचरा फेकता चला जारहा है और इसे तग करता रहता है । परन्तु वह लोगा वो मना कर
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