Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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प्रस्तुत कृति में वर्धमानसूरि ने जो अपनी गुरु परम्परा दी है, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वे खरतरगच्छ की रूद्रपल्ली शाखा से सम्बन्धित थे। ज्ञातव्य हैं कि जिनवल्लभसूरि के गुरु भ्राता जिनशेखरसूरि ने जिनदत्तसूरि द्वारा जिनचंद्रसूरि को अपने पट्ट पर स्थापित करने से रूष्ट होकर उनसे पृथक् हो गए और उन्होंने रूद्रपल्ली शाखा की स्थापना की। ऐसा लगता हैं कि जहाँ जिनदत्तसूरि की परम्परा ने उत्तर-पश्चिम भारत को अपना प्रभाव क्षेत्र बनाया, वही जिनशेखर सूरि ने पूर्वोत्तर क्षेत्र को अपना प्रभाव क्षेत्र बनाकर विचरण किया। रूद्रपल्ली शाखा का उद्भव लखनऊ और अयोध्या के मध्यवर्ती रूद्रपल्ली नामक नगर में हुआ और इसीलिए इसका नाम रूद्रपल्ली शाखा पड़ा। वर्तमान में भी यह स्थान रूदौली के नाम से प्रसिद्ध हैं इस शाखा का प्रभाव क्षेत्र पश्चिमी उत्तरप्रदेश, हरियाणा और पंजाब तक रहा। प्रस्तुत आचारदिनकर की प्रशस्ति से भी यह स्पष्ट हो जाता हैं कि इस ग्रन्थ की रचना पंजाब के जालंधर नगर के नंदनवन में हुई, जो रूद्रपल्ली शाखा का प्रभाव क्षेत्र रहा होगा । यह स्पष्ट है कि रूद्रपल्ली स्वतंत्र गच्छ न होकर खरतरगच्छ का ही एक विभाग था । साहित्यिक दृष्टि से रूद्रपल्ली शाखा के आचार्यों द्वारा अनेक ग्रंथों की रचना हुई। अभयदेवसूरि (द्वितीय) द्वारा जयन्तविजय महाकाव्य वि.स. १२७८ में रचा गया। अभयदेवसूरि (द्वितीय) के पट्टधर देवभद्रसूरि के शिष्य तिलकसूरि ने गौतमपृच्छावृत्ति की रचना की है। उनके पश्चात् प्रभानंदसूरि ने ऋषभपंचाशिकावृत्ति और वीतरागवृत्ति की रचना की । इसी क्रम में आगे संघतिलकसूरि हुए जिन्होंने सम्यक्त्वसप्ततिटीका, वर्धमानविद्याकल्प, षट्दर्शनसमुच्चयवृत्ति की रचना की। इनके द्वारा रचित ग्रंथों में वीरकल्प, कुमारपालचरित्र, शीलतरंगिनीवृत्ति, कन्यानयनमहावीरप्रतिमाकल्प (प्रदीप ) आदि कृतियाँ भी मिलती है। कन्यानयनमहावीरप्रतिमाकल्प की रचना से भी यह स्पष्ट हो जाता हैं, कि इस शाखा का प्रभाव क्षेत्र पश्चिमी उत्तरप्रदेश था, क्योंकि यह कल्प वर्तमान कन्नौज के भगवान महावीर के
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