Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 233
________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 189 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान "वाक्पतेरुच्चकरणं शरणं तारकेशितुः। कर्कटं धनदाशास्थं पूजयामो निरन्तरम् ।। ऊँ नमः कर्काय कर्क इह शान्तिकमहोत्सवे.... शेष पूर्ववत्।" सिंहराशि हेतु - “पद्मिनीपतिसंवासः पूर्वाशाकृतसंश्रयः। सिंह समस्तदुःखानि विनाशयतु धीमताम् ।। “ॐ नमः सिंहाय सिंह इह शान्तिकमहोत्सवे...शेष पूर्ववत् ।' कन्याराशि हेतु - "बुधस्य सदनं रम्यं तस्यैवोच्चत्वकारिणी। कन्या कृतान्त दिग्वासा ममानन्दं प्रयच्छत।।" “ॐ नमः कन्यायै कन्ये इह शान्तिकमहोत्सवे..... शेष पूर्ववत्।" तुलाराशि हेतु - “यो दैत्यानां महाचार्यस्तस्यावासत्वमागतः। शनेरुच्चत्वदातास्तु पश्चिमास्थस्तुलाधरः।।" “ॐ नमः तुलाधराय तुलाधर इह शान्तिकमहोत्सवे...... शेष पूर्ववत् । वृश्चिकराशि हेतु - "भौमस्य तु सुखं क्षेत्रं धनदाशाविभासकः । वृश्चिको दुःखसंघातं शान्तिकेऽत्र निहन्तु नः ।। ___ “ऊँ नमो वृश्चिकाय वृश्चिक इह शान्तिकमहोत्सवे...... शेष पूर्ववत् । धनुराशि हेतु - “सर्वदेवगणाय॑स्य सदनं पददायिनः। सुरेन्द्राशास्थितो धन्वी धनवृद्धिं करोतु नः।।" “ऊँ नमो धन्विने धन्विन् इह शान्तिकमहोत्सवे....... शेष पूर्ववत् । मकरराशि हेतु - "निवासः सूर्य पुत्रस्य भूमिपुत्रोच्चताकरः। मकर दक्षिणासंस्थः संस्थाभीतिं विहन्तु नः।।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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