Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 265
________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 221 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान . नीलांजनसमाकारं रविपुत्रं महाग्रहम्। छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ।।७।। अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम्। सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ।।८।। पलालधूमसंकाशं तारकाग्रहमर्दकम्। रुद्राद्रुद्रतमं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ।।६ ।। इदं व्यासमुखोद्भूतं यः पठेत्सुसमाहितः। दिवा वा यदि वा रात्रौ तेषां शान्तिर्भविष्यति ।।१०।। ऐश्वर्यमतुलं चैवमारोग्यं पुष्टिवर्धनम् । नरनारीवश्यकरं भवेत्दुःस्वप्ननाशनम् ।।११।। ग्रहनक्षत्रपीडां च तथा चाग्निसमुद्रवम्। तत्सर्वं प्रलयं याति व्यासो ब्रूते न संशयः ।।१२।।" __ ग्रहपूजा के अन्त में शान्ति हेतु यह पाठ तीन बार बोलें। आचार्य वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर के उभयधर्मस्तम्भ में शान्ताधिकार-कीर्तन नामक यह चौंतीसवाँ उदय समाप्त होता है। ++++++ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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