Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 267
________________ 223 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान “ॐ श्रियै पद्मद्रहनिवासिन्यै श्रियै नमः श्रि इह पौष्टिके आगच्छ-आगच्छ सायुधाः सवाहनाः सपरिकराः इदमर्थ्यं . आचमनीयं गृहाण - गृहाण सन्निहिता भव भव स्वाहा जलं गृहाण - गृहाण गन्धं अक्षतान् फलानि मुद्रां पुष्पं धूपं दीपं नैवेद्यं सर्वोपचारान् गृहाण- गृहाण शान्तिं कुरू कुरू तुष्टिं कुरू कुरू पुष्टिं कुरू कुरू ऋद्धि कुरू कुरू वृद्धि कुरू कुरू सर्वसमीहितानि देहि देहि स्वाहा । " ह्रियंदेवी की पूजा के लिए निम्न मंत्र बोलकर सर्वप्रकारी पूजा आचारदिनकर (खण्ड-: ३) करें - मूलमंत्र "ॐ ह्रीं हिये नमः ।" “धूम्रांगयष्टिरसिखेटकबीजपूरवीणाविभूषितकरा घृतरक्तवस्त्रा । ह्रीर्घोरवारणविघातनवाहनढ्या पुष्टीश्च पौष्टिकविधौ विदधातु नित्यम् ।।" ॐ नमो हिये महापद्मद्रहवासिन्यै हि इह पौष्टिके...... शेष पूर्ववत् । " धृतिदेवी की पूजा के लिए निम्न मंत्र बोलकर सर्वप्रकारी पूजा करें - मूलमंत्र – “ ॐ ध्रां धीं धौं धः धृतये नमः । "चंद्रोज्वलांगवसना शुभमानसौकः पत्रिप्रयाणकृदनुत्तरसत्प्रभावा । स्रक्पद्मनिर्मलकमण्डलुबीजपूरहस्ता धृतिं धृतिरिहानिशमादधातु ।।" “ॐ नमो धृतये तिगिच्छिद्रहवासिन्यै धृते इह पौष्टिके..... शेष पूर्ववत् । " कीर्तिदेवी की पूजा करें कर्मणात्र ।। " मूलमंत्र - "ॐ श्रीं शः कीर्तये नमः । " “शुक्लांगयष्टिरुडुनायकवर्णवस्त्रा हंसासना धृतकमण्डलुकाक्षसूत्रा। श्वेताब्जचामरविलासिकरातिकीर्तिः कीर्तिं ददातु वरपौष्टिक पूर्ववत् । " के लिए निम्न मंत्र बोलकर सर्वप्रकारी पूजा "ॐ नमः कीर्तये केशरिद्रहवासिन्यै इह पौष्टिके शेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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