Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 207 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान चावल, पुष्प, दो हजार सरसों, प्रियंगु (केसर) एवं मदयन्ति से वासित जल से स्नान करें। आश्लेषा नक्षत्र की शान्ति के लिए सौ वाल्मिकों की मिट्टी से एवं मघा नक्षत्र की शान्ति के लिए देव-निर्माल्य से वासित जल से स्नान करें। इसी प्रकार पूर्वाफाल्गुनीनक्षत्र की शान्ति के लिए लवणसहित घी एवं सेमल के वृक्ष से वासित जल से स्नान करने के लिए कहा गया है। उत्तराफाल्गुनीनक्षत्र की शान्ति के लिए सौ पुष्प, प्रियंगु (केसर) एवं मोथा से वासित जल से स्नान करें। हस्तनक्षत्र की शान्ति के लिए सरोवर एवं गिरि (पर्वत) की मिट्टी से वासित जल से स्नान करें। चित्रानक्षत्र की शान्ति के लिए देव-निर्माल्य से वासित जल से स्नान करें। स्वातिनक्षत्र की शान्ति के लिए कमल-पुष्पों से वासित जल से स्नान करें। विशाखानक्षत्र की शान्ति के लिए मत्स्य-चम्पक से वासित जल से स्नान करें। अनुराधानक्षत्र की शान्ति के लिए नदी के दोनों किनारों की मिट्टी से वासित जल से स्नान करें। ज्येष्ठानक्षत्र की शान्ति के लिए हरिताल मिट्टी से वासित जल से स्नान करें। मूलनक्षत्र की शान्ति के लिए शमी के दो हजार पत्रों से वासित जल से स्नान करें। पूर्वाषाढ़ानक्षत्र की शान्ति के लिए मधूक सहित पद्ममत्स्य से वासित जल से स्नान करें। उत्तराषाढ़ानक्षत्र की शान्ति के लिए उशीर (वीरणमूल /खस) चन्दन एवं पद्ममिश्रित जल से स्नान करें। श्रवणनक्षत्र की शान्ति के लिए नदी के दोनों किनारों की मिट्टीसहित स्वर्ण से वासित जल से स्नान करें। धनिष्ठा नक्षत्र की शान्ति के लिए घी, चीड़वृक्ष एवं मधु से वासित जल से स्नान करें। शतभिषानक्षत्र की शान्ति के लिए मदनफलसहित, सहदेवी, वृश्चिक, मदयन्ति, घी एवं चम्पा से वासित जल से स्नान करें। पूर्वाभाद्रपदानक्षत्र की शान्ति के लिए कमल एवं प्रियंगु (केसर) से वासित जल से स्नान करें। उत्तराभाद्रपदानक्षत्र की शान्ति के लिए अत्यन्त सुगन्धित द्रव्य से स्नान करें। राजाओं को पद्म, उशीर एवं चन्दन से वासित जल से स्नान करना प्रशस्त कहा गया है। रेवती नक्षत्र में बैल के सींगों से उत्खनित मिट्टी, मधु एवं घीसहित जल से स्नान करना चाहिए। विजययात्रा हेतु प्रस्थान करने वालो के लिए गोरोचन एवं अंजन से वासित जल से स्नान करना प्रशस्त माना गया है। पर्वत की वाल्मीक की, नदीमुख
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