Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 253
________________ आचारदिनकर (खण्ड - ३ ) 209 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान हैं, उन्हें ज्योतिषी के निराकरण के लिए मैं कहूंगा । पूर्वात्रय नक्षत्र अग्निहोत्री द्विजों के लिए, राजाओं एवं क्षत्रियों के लिए पुष्य नक्षत्र सहित उत्तरात्रय नक्षत्र निर्दिष्ट हैं। रेवती, अनुराधा, मघा, पुष्य एवं रोहिणी - ये नक्षत्र किसानों के लिए निर्दिष्ट किए गए है । पुनर्वसु, हस्त, अभिजित और अश्विनी ये नक्षत्र वैश्यों के लिए अपने प्रभाव क्षेत्र के विस्तार हेतु लाभप्रद कहे गए है । मूल, आर्द्रा, पूर्वाषाढा और शतभिषा नक्षत्र उग्र जातियों के है । सेवार्थ स्वामी के समीप आए हुए सेवकों के लिए मृगशीर्ष, ज्येष्ठा, चित्रा, धनिष्ठा नक्षत्र अभीष्ट माने गए हैं। आश्लेषा, विशाखा, श्रवण एवं भरणी नक्षत्रों का निर्देश चाण्डाल जाति के लिए किया गया हैं । 1 यदि सूर्य और शनि ग्रह मंगल ग्रह से ग्रसित हो या शनि ग्रह वक्र दृष्टि वाला हो अथवा सूर्य ग्रह ग्रहण से ग्रसित हो तो अथवा उल्कापात से हत हो तो वह मुखादि इन्द्रियों को पीड़ादायी होते है । ग्रहों की यह स्थिति क्षत-विक्षत कही जाती है । वे अपनी प्रकृति से विपरीत अवस्था में होने के कारण शत्रु वर्ग द्वारा पीड़ाकारी होते है । इसके विपरीत ग्रहों की स्थिति समृद्धिकारी मानी जाती है। जन्म नक्षत्र में किया गया कार्य सफल नहीं होता है तथा रोगो के आगमन, धन का विनाश, कलह से पीड़ा एवं सांघातिक भेद का कारण होता है अथवा समुदायिक पीड़ा होने पर उसके निवारण के लिए संग्रहित द्रव्य का व्यय हो जाता है तथा कायिक विपदाओं के कारण चिन्ता होती है और मन दुःखी हो जाता है । नि उपद्रुत नक्षत्रों में व्यक्ति रोग-रहित, सुखी, शत्रु से रहित और धन से समृद्ध होता है। छह उपद्रुत नक्षत्रों में और अन्य तीन नक्षत्रों में राजा विनाश को प्राप्त होता हैं। शारीरिक कष्टों को उपशान्त करने के उपायों के अभाव में भी यदि शरीर की वेदना का अनुभव नहीं होता है, ऐसा व्यक्ति पक्ष में ही मर जाता है। ऐसा देवलऋषि का मत है । इन सभी विपत्तियों में एक दिन का उपवास करके किसी देवता या ब्राह्मण विशेष के समक्ष दूध प्रदान करने वाले वृक्षों की समिधाओं से अग्नि में हवन करें। गाय के दूध, सफेद बैल के गोबर और मूत्र तथा पूर्ण कोश वाले पत्तों के द्वारा स्नान करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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