Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 210 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान पर पवित्र आचार वाले व्यक्तियों के जन्म नक्षत्र के सभी दोष नष्ट हो जाते हैं।
दस दिन तक अम्ल, मदिरा और मांस का सेवन न करता हुआ, शहद और घी की आहुति से हवन करें तथा दूर्वा, प्रियंगु, राई, शतावरी - इन सबको जल में डालकर स्नान करें। सांघातिक दोष से पीड़ित होने पर मांस, मधु तथा क्रूरता एवं कामवासना का त्याग करके, इन्द्रियों का संयम करते हुए, दूर्वा से हवन करें और यथा शक्ति दान देवें। सामुहिक रूप से पीड़ा देने वाले नक्षत्रों के लिए स्वर्ण एवं चाँदी का दान देकर उन्हें संतुष्ट करें और विनाश करने वाले नक्षत्रों में अन्न, पेय पदार्थ एवं भूमि आदि का गुणशाली व्यक्ति अर्थात् द्विजों को दान दें। मानसिक कष्ट के समय कमल के द्वारा हवन करें और पूज्य ब्राह्मणों को खीर का भोजन दे तथा हाथी के मस्तक से निकलने वाले मदाजल, शिरीष के पुष्प, चन्दन, तिल आदि से वासित जल से स्नान करें - यह लोक परम्परा के अनुसार नक्षत्र शान्ति की विधि हैं। __ अब ग्रह-शान्तिक की विधि बताते हैं -
सर्वप्रथम निम्न विधि से ग्रहों की स्थापना करें। विधिवत् पूजित तीर्थंकर की प्रतिमा के आगे गोबर से लिप्त शुद्ध भूमि पर चन्दन से लिप्त श्रीखण्ड (चन्दन) या श्रीपर्णी के पीट, अर्थात् चौकी पर स्व-स्व वर्णानुसार ग्रहों को स्थापित करें। उनकी स्थापना की विधि इस प्रकार है -
चावलों से मध्य में सूर्य, पूर्व-दक्षिण (आग्नेयकोण) में चन्द्र, दक्षिणदिशा में मंगल, पूर्व-उत्तर (ईशानकोण) में बुध, उत्तरदिशा में गुरु, पूर्वदिशा में शुक्र, पश्चिमदिशा में शनि, दक्षिणदिशा में राहु, पश्चिम-उत्तर दिशा में (वायव्यकोण में) केतु की स्थापना करें। सूर्य के लिए गोल मण्डल बनाएं, चन्द्र हेतु चतुष्काकार बनाएं, मंगल के लिए त्रिकोण आकार बनाएं, बुध के लिए बाण के सदृश आकृति बनाएं, गुरु के लिए पट्टिकाकार (आयताकार) बनाएं, शुक्र के लिए पंचकोण बनाएं और शनि के लिए धनुष की आकृति बनाएं। राहु हेतु शूर्प के आकार की आकृति बनाएं तथा केतु के लिए ध्वजा का आकार
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