Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 202 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान क्रिया नहीं करे, तो ज्येष्ठव्यक्ति, अर्थात् दादा, पिता, चाचा या परिवार के अन्य किसी प्रमुख व्यक्ति का विनाश होता है। मूलनक्षत्र की शान्ति के लिए निर्ऋती की पूजा कर, तिल, सरसों, आसुरी, कड़वे तेल, लवण एवं घी से हवन करें। ज्येष्ठा, मूल, आश्लेषा, गण्डान्त, व्यतिपात, वैधृति, शूल, विष्टि, वज्र, विष्कम्भ, परिघाऽतिगंड में जन्मे बालकों के मुहूर्त, घटिका, पाद, बेला आदि तथा वार आदि से उत्पन्न होने वाले दोषों को ज्योतिषशास्त्र से जानें। यहाँ नक्षत्रशान्ति की विधि ही बताई गई है।
अब मूल एवं आश्लेषा नक्षत्रों के शान्ति-विधान की विधि बताते हैं -
अभुक्त मूलनक्षत्र में बालक का जन्म हो, तो उस बालक का त्याग कर दें या समाष्टक हो, तो पिता उसका मुँह न देखे। इस नक्षत्र में बालक का जन्म प्रथम पाद में हो, तो पिता का, द्वितीय पाद में हो, तो माता का, तृतीय पाद में हो, तो धन का नाश होता है तथा चतुर्थ पाद में हो, तो शुभ होता है। यह नक्षत्र अन्तिम पाद में विपरीत फल देता है। यही बात आश्लेषानक्षत्र के बारे में भी कही गई है। उक्त दोषों की शान्ति करने के लिए शान्तिकर्म करें। शत औषधि, मूल, सागर की मिट्टी, सागर के रत्न एवं अन्नगर्भित (सद्बीजगर्भे) कलशों से मंत्रपूर्वक जननी, पिता एवं बालक को स्नान कराएं साथ ही कल्याण के लिए हवन करें एवं दान दें। पूर्व में लिपी गई भूमि पर कर्पूर, चन्दन आदि सुगन्धित द्रव्यों से वासित एवं मंत्र से संस्कारित अखण्ड अक्षतों से मंगल-चिन्ह रूप स्वस्तिक बनाएं। उस पर श्रीपर्णी की पीठ स्थापित करें। उसके ऊपर नवग्रहों की स्थापना करके उसके मध्य में सुगंधित द्रव्यों से पुरुषाकार मूल नक्षत्र को आलेखित करें। आश्लेषानक्षत्र की शान्ति हेतु सर्प बनाएं। उसके ऊपर “ऊँ ह्रीं अहये नमः "- यह मंत्र लिखकर कलश स्थापित करें तथा उसे सुगंधित द्रव्यों के मिश्रित जल से भर दें। एक सौ आठ पुष्प, शुष्क एवं आर्द्रफल एवं मुद्रासहित धूप, दीप एवं नैवेद्यों से कलश की पूजा करें। कलश को ढकने के लिए बारह हाथ-परिमाण वस्त्र का उपयोग करें। उसके आगे शिशु एवं माता पूर्वाभिमुख होकर बैठे। उसके आगे दस
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