Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 200 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान प्रसन्नता, शुभत्व, कल्याण एवं तुष्टि-पुष्टि की वृद्धि होती हैं। शान्तिक-विधान से इच्छित कार्य की सिद्धि होती है। - यह शान्तिककर्म का फल हैं। शान्तिककर्म के अन्त में साधुओं को भी फल, वस्त्र, भोजन, उपकरण आदि प्रदान करें। इस विधि में जहाँ-जहाँ गृह शब्द का प्रयोग हुआ है, वहाँ-वहाँ गृहपति के नाम का उच्चारण करें।
अब नक्षत्र एवं ग्रह की शान्तिक-विधि बताते हैं -
क्रूर ग्रह, क्रूर वेध तथा चन्द्र-सूर्य ग्रहण से जन्म एवं नाम नक्षत्र के दूषित होने पर बिना प्रमाद किए यह शान्तिककर्म करें। इसी प्रकार अयुक्त तथा अविहित आश्लेषा एवं मूल नक्षत्रों में जन्म होने पर, ज्येष्ठानक्षत्र में पुत्र का जन्म होने पर, रोगग्रस्त होने पर ग्रह-चक्र (जन्मकुण्डली) में वधक दशा के आने पर - इत्यादि कारणों के उपस्थित होने पर नक्षत्र-शान्ति करें। गोचर में बाईं ओर वेध हो, अष्टवर्ग का संश्रय हो, निर्बल ग्रह में जन्म तथा जन्मकाल के समय ग्रहों की निर्बल दशा हो, तो-इन कारणों के होने पर भी ग्रहशान्तिककर्म करें। नक्षत्रों में नक्षत्र की शान्ति तथा सोमादि वारों में ग्रहशान्ति करें।
यहाँ सर्वप्रथम नक्षत्र-शान्तिक की विधि बताते हैं। वह इस प्रकार है - हाथ में पुष्पांजलि लेकर निम्न छंदपूर्वक पूर्वस्थापित पीठ के ऊपर पुष्पांजलि प्रक्षेपित करें। अश्विन्यादीनि धिष्ण्यानि संमतान्यब्धिजादिभिः।
युतानि शान्तिं कुर्वन्तु पूजितान्याहुति क्रमैः।। अश्विनीनक्षत्र की शान्ति के लिए अश्विनीकुमार की दो मूर्तियाँ स्थापित कर पूर्वोक्त विधि से पूजा कर घी, मधु एवं गुग्गुलसहित सर्व
औषधि से आहुति दें। सभी नक्षत्रों के हवन में चौकोर कुण्ड होते हैं। एक बेंत-परिमाण की पीपल, बरगद, प्लक्ष एवं आंकड़े की लकड़ी की समिधाएँ दी जाती हैं। प्रत्येक नक्षत्र के प्रति आहुति दें। इस प्रकार अट्ठाईस आहुतियाँ होती हैं। अपने-अपने मूलमंत्र द्वारा संस्थापित तिलकमात्र से या आकृति बनाकर नक्षत्रों की स्थापना करें। भरणीनक्षत्र की शान्ति के लिए यम को स्थापित कर, पूर्ववत् अच्छी तरह पूजा कर, विशेषतः घी, गुग्गुल एवं मधु के मिश्रण से आहुति
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