Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 214
________________ आचारदिनकर (खण्ड-३) 170 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान में जो मंत्र लिखे हुए हैं, उन्हीं मंत्रों द्वारा वासक्षेप डालकर मंत्र का न्यास करें। उस यंत्र पर उत्कीर्ण मूर्ति पर निम्न मंत्र द्वारा मंत्र का न्यास करें - “ॐ ह्रीं अमुक देवाय अमुकदैव्यै वा नमः।" वस्त्र पर निर्मित या शिला पर निर्मित आलेखित मूर्ति, चित्र अथवा लिखित यंत्र पर या समवसरण पर या भरितपट्ट पर उनमें लिखित मंत्र पाठ द्वारा तथा उसमें गर्भित देवताओं को नमस्कार करके वासक्षेपपूर्वक पट्ट की प्रतिष्ठा करें। यहाँ परमार्थ के कारण वस्त्रपट्ट आदि की स्नात्र-विधि का वर्जन किया गया है। यहाँ दर्पण में प्रतिबिम्बित उसके बिम्ब पर ही स्नात्र-विधि कराने का विधान है, क्योंकि स्नात्रविधि के बिना प्रतिष्ठा अपूर्ण मानी जाती है - इस प्रकार प्रतिष्ठा-अधिकार में मंत्रपट्ट की प्रतिष्ठा-विधि सम्पूर्ण होती है। अब पितृमूर्ति की प्रतिष्ठा-विधि बताते हैं। वह इस प्रकार है प्रासाद में स्थापित की जाने वाली गृहस्थों की पितृमूर्ति पत्थर से निर्मित होती है। गृह में पूजा के लिए स्थापित की जाने वाली गृहस्थों की पितृमूर्ति धातु की या पट्टिका के रूप में या पट्ट पर आलेखित होती है। कण्ठ में पहनने के लिए उनके शरीर की आकृति या नामांकित करके उनकी प्रतिष्ठा की जाती है। इन सब की प्रतिष्ठा-विधि एक जैसी ही है। बृहत्स्नात्रविधि द्वारा अर्हत् परमात्मा की स्नात्र-विधि करें। उस स्नात्र के जल से तीनों प्रकार की पितृमूर्तियों को स्नान कराएं। फिर गुरु वासक्षेप डालकर प्रतिष्ठा करें। तत्पश्चात् साधर्मिकवात्सल्य और संघपूजा करें। इस प्रकार प्रतिष्ठा-अधिकार में पितृमूर्ति की प्रतिष्ठा-विधि समाप्त होती है। __अब यति (साधु-साध्वी) मूर्ति की प्रतिष्ठा-विधि बताते हैं। वह इस प्रकार है - प्रासाद में, पौषधागार में साधु की मूर्ति या यतिस्तूप स्थापित करने की विधि यह है। आचार्य की मूर्ति या स्तूप की प्रतिष्ठा निम्न मंत्र से तीन बार वासक्षेपपूर्वक करें - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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