Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३)
174 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान
किए जाने वाले कार्यों का उल्लेख करें। फिर उनके वर्ण, आयुध एवं परिवार के बारे में बोलें। मंत्र के मध्य 'अमुक' शब्द के स्थान पर उपर्युक्त कथन करें यह इसका आशय है । देवियों के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार की विधि है । यहाँ गणिपिटक, शासनयक्ष, शासनयक्षिणी, ब्रह्मशान्तियक्ष आदि की प्रतिष्ठा विधि का समावेश व्यंतरदेवों में हो जाता हैं । कन्दर्पादिक की प्रतिष्ठा विधि का समावेश वैमानिकदेवों में, लोकपालों की प्रतिष्ठा - विधि का समावेश भवनपतिदेवों में, नैर्ऋत्य (दिक्पालों) की प्रतिष्ठा - विधि का समावेश व्यंतरदेवों में, ज्योतिष्कदेवों की प्रतिष्ठा - विधि का समावेश ग्रहों की प्रतिष्ठा में हो जाता है । इस प्रकार प्रतिष्ठा - अधिकार में चतुर्निकाय देव की प्रतिष्ठा - विधि समाप्त होती है।
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अब गृह की प्रतिष्ठा-विधि बताते हैं । वह इस प्रकार है वास्तुशास्त्र के अनुसार एवं सूत्रधारों के अनुसार बताई गई विधि से निर्मित गृह, राजमन्दिर एवं सामान्य मन्दिर ( भवन ) की प्रतिष्ठा - विधि एक जैसी ही है। सर्वप्रथम गृह में जिनबिम्ब लेकर आएं। बृहत्स्नात्रविधि द्वारा अर्हत् परमात्मा की स्नात्रपूजा करें। स्नात्रजल से सम्पूर्ण गृह को अभिसिंचित करें । सर्वप्रथम बाहर की तरफ द्वार की देहली को निर्मल जल से धोएं। तत्पश्चात् गन्ध, धूप, दीप, नैवैद्य आदि से उसकी पूजा करें और ऊँ कार (ॐ) लिखे । इसी प्रकार द्वारश्रिय को धोकर, चन्दन का लेप एवं पूजा करके ह्रीं कार ( ह्रीं) लिखें। फिर तीन बार वासक्षेप डालकर दोनों की प्रतिष्ठा करें। इन दोनों के प्रतिष्ठा - मंत्र इस प्रकार हैं
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१. ॐ ह्रीं देहल्यै नमः ।
तत्पश्चात् बाहर की तरफ निम्न १. वामे - गंगायै नमः । २ दक्षिणे - यमुनायै नमः । इन मंत्रों द्वारा बाहर की तरफ बाईं और दाईं ओर जल, गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य प्रदान करने के पूर्व तीन-तीन बार वासक्षेप डालकर प्रतिष्ठा करें। सभी द्वारों की प्रतिष्ठा इसी प्रकार से करें। फिर अन्दर प्रवेश करके निम्न मंत्र से द्वार - प्रतिष्ठा के समान ही सर्वभित्ति भागों की प्रतिष्ठा करें.
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२. ॐ ह्रीं द्वारश्रियै नमः । मंत्र बोलें
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