Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 178 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान का विसर्जन भी पूर्व की भांति ही करें। फिर साधुओं को दान दें एवं संघपूजा करें।
इस प्रकार प्रतिष्ठा-अधिकार से अट्टालिकादि की प्रतिष्ठा-विधि सम्पूर्ण होती है। अब दुर्ग की प्रतिष्ठा-विधि बताते हैं, जो इस प्रकार
___ नवनिर्मित दुर्ग में सर्वप्रथम चौबीस तन्तु से युक्त सूत्र द्वारा अन्दर और बाहर की तरफ शान्तिमंत्रपूर्वक रक्षा करें। फिर उसके मध्य में ईशानदिशा की तरफ जिनबिम्ब को स्थापित करके बृहत्स्नात्रविधि से स्नात्रपूजा करें। दसवलय से युक्त बृहत् नंद्यावर्त्त की स्थापना एवं हवन बिम्बप्रतिष्ठा की भाँति ही करें। तत्पश्चात् विधिपूर्वक शांतिक एवं पौष्टिककर्म करें। फिर शान्तिक एवं पौष्टिककर्म के जलकलश को ग्रहण कर अन्दर और बाहर की तरफ (जल की) धारा दें। दुर्ग के कंगूरों पर तथा चार दिवारी पर वासक्षेप डालें। धारा एवं वासक्षेप डालने का मंत्र निम्न है -
____ "ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गे दुर्गमे दुःप्रघर्षे दुःसहे दुर्गे अवतर-अवतर तिष्ठ-तिष्ट दुर्गस्योपद्रवं हर-हर डमरं हर-हर दुर्भिक्षं हर-हर परचक्रं हर-हर मरकं हर-हर सर्वदा रक्षां शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।'
इस प्रकार दुर्ग की प्रतिष्ठा करके मुख्यमार्ग की एवं द्वार की प्रतिष्ठा करें। यहाँ इतना विशेष है कि अधोभाग में दाईं तरफ “ऊँ
अनन्ताय नमः", बाईं तरफ “ॐ वासुकये नमः", ऊपर की तरफ दाईं ओर "ऊँ श्री महालक्ष्म्यै नमः", एवं बाईं ओर “ॐ गं गणेशाय नमः"- मंत्र से प्रतिष्ठा करें। उसके बाद दुर्ग के मध्यभाग में आकर गोबर से लिप्त भूमि पर खड़े होकर कलश-विधि के समान दिक्पालों का आह्वान करें और कलश-विधि के सदृश ही शान्ति हेतु बलि प्रदान करें। तत्पश्चात् पूर्व की भाँति नंद्यावर्त्त का विसर्जन करें। साधुओं को दान दें और संघपूजा करें। यंत्र की प्रतिष्ठा-विधि में भैरवादि के यंत्रों की प्रतिष्ठा-विधि एक जैसी ही है। परिपूर्ण यंत्रों के मूल में जिनबिम्ब को स्थापित करके बृहत्स्नात्रविधि से स्नात्रपूजा करें।
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