Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड-३) 179 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक-पौष्टिककर्म विधान फिर उस स्नात्रजल से यंत्र को अभिसिंचित करें तथा वासक्षेप डालें। वासक्षेप डालने का मंत्र निम्न है -
“ऊँ ह्रीं षट्-षट् लिहि-लिहि ग्रन्थे ग्रन्थिनि भगवति यंत्रदेवते इह अवतर-अवतर शत्रून् हन-हन समीहितं देहि-देहि स्वाहा।"
तत्पश्चात् इसी मंत्र से रक्षाबन्धन करें। तत्पश्चात् वैज्ञानिकों का सम्मान करें। इस प्रकार प्रतिष्ठा-अधिकार में दुर्ग एवं यंत्र की प्रतिष्ठा-विधि समाप्त होती है।
अब अधिवासना की विधि बताते हैं और वह इस प्रकार है -
वासक्षेप, कुलाभिषेक एवं हस्तन्यास द्वारा अधिवासना की विधि होती है। पूजा-भूमि-अधिवासना में निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ लल। पवित्रिताया मंत्रैकभूमौ सर्वसुरासुराः ।
आयान्तु पूजां गृह्णन्तु यच्छन्तु च समीहितम् ।।" शयनभूमि-अधिवासना में निम्न मंत्र बोलें - "ॐ लल। समाधिसंहतिकरी सर्वविघ्नापहारिणी
संवेशदेवतात्रैव भूमौ तिष्ठतु निश्चला।।" आसनभूमि-अधिवासना में निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ लल। शेषमस्तकसंदिष्टा स्थिरा सुस्थिरमंगला।
निवेश भूमावत्रास्तु देवता स्थिर संस्थितिः।।" विहारभूमि-अधिवासना में निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ लल। पदे पदे निधानानां खानानीनामपि दर्शनम् ।
करोतु प्रीतहृदया देवी विश्वंभरा मम।।" क्षेत्रभूमि-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ लल। समस्त रम्यवृक्षाणां धान्यानां सर्वसंपदाम् ।
निदानमस्तु मे क्षेत्र भूमिः संप्रीतमानसा।।" सर्व उपयोगी भूमि-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ लल। यत्कार्य महमत्रैक भूमौ संपादयामि च।
तच्छीघ्रं सिद्धिमायातु सुप्रसन्नास्तु मे क्षितिः।।" जल-अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें - "ऊँ वव। जलं निजोपकराया परोपकृतयेऽथवा।
- पूजार्थायाथ गृह्णामि भद्रमस्तु न पातकम्।।"
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