Book Title: Pratishtha Shantikkarma Paushtikkarma Evam Balividhan
Author(s): Vardhmansuri, Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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आचारदिनकर (खण्ड- -३)
183 प्रतिष्ठाविधि एवं शान्तिक- पौष्टिककर्म विधान
सर्व भोग्य-उपकरण - अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें "ॐ खं खं । सर्वभोग्योपकरणं सजीवं जीववर्जितम् । तत्सर्वं सुखदं भूयान्माभूत्पापं तदाश्रयम् ।। " चामर - अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें “ॐ चं चं । गोपुच्छसंभवं हृद्यं पवित्र चामरद्वयम् । राज्यश्रियं स्थिरीकृत्य वांछितानि प्रयच्छतु ।। " सर्व वाद्य - अधिवासना हेतु निम्न मंत्र बोलें “ ॐ वद । सुषिरं च तथाऽऽनद्धं ततं घनसमन्वितम् । वाद्यं प्रौढ़ेन शब्देन रिपुचक्रं निकृन्ततु ।।" उपर्युक्त वस्तुओं के अतिरिक्त सर्व वस्तुओं की अधिवासना निम्न मंत्र से करें
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“ऊँ श्रीं आत्मा। सर्वाणि यानि वस्तूनि मम यान्त्युपयोगिताम् । तानिसर्वाणि सौभाग्यं यच्छन्तु विपुलां श्रियम् ।। " गृहस्थ को जिन वस्तुओं की प्रतिष्ठा करनी हो ऐसी जीव- अजीवरूप वस्तुओं की प्रतिष्ठा उन-उन वस्तुओं के मंत्रों से करें तथा उक्त वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं की प्रतिष्ठा अन्तिम मंत्र से करें ।
चन्द्रबल होने पर शुभदिन में ही अधिवासना की विधि होती है । निम्न छंद द्वारा सभी देव देवियों के कलश एवं ध्वजों की स्थापना करें -
प्रयच्छ ।
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“भद्रं कुरुष्व परिपालय सर्ववंशं विघ्नं हरस्व विपुलां कमलां
जैवातृकार्क सुरसिद्धजलानि यावत्स्थैर्यं भजस्व वितनुष्व
समीहितानि ।।" अर्हत् मत में प्रतिष्ठा कभी भी रात्रि में नहीं होती है। जिनवल्लभसूरि द्वारा विशेष रूप से इसका निषेध किया गया है। अब सभी प्रतिष्ठाओं की प्रतिष्ठा - दिनशुद्धि की विधि बताते हैं -
स्व-स्व नक्षत्र, तिथि और वारों में कृष्णपक्ष एवं शुभलग्न में चन्द्रमा एवं तारों का बल देखकर उन-उन देवों की स्थापना करें पुष्य, श्रवण, अभिजित नक्षत्र में ऐश्वर्य से परिपूर्ण कुबेर और
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